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________________ भीमसेन चरित्र नहीं होने देगा। कन्या के प्रति उसके मन में सदैव अनुराग और स्नेह भाव बरकरार रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कहें तो ऐसा सुन्दर और श्रेष्ठ योग बहुत कम लोगों की कुण्डली में दिखाई देता है। यहाँ रिश्ता पक्का करने से सर्वत्र आनन्द और सुख की वृद्धि होगी। राज ज्योतिषियों का अभिप्राय ज्ञात कर सभी जन आनन्द मग्न हो गये। भीमसेन की तस्वीर देखकर सभी का तन-मन आनन्द सागर में आकंठ डूब गया था और अन्तः मन से प्रत्येक की यही इच्छा थी कि, सुशीला का पाणिग्रहण भीमसेन के साथ हो। तभी ज्योतिषियों ने भी जब इसके अनुरूप ही अपना अभिप्राय बताया, तब राजदरबार में उपस्थित सभी की हृदय की कलि खिल गयी। किन्तु सर्वाधिक आनन्द और सन्तोष सुमित्र को हुआ। अपने स्वामी के पुत्र के लिये इतनी सुन्दर व गुणवती कन्या मिल गयी। अतः उसकी खुशी का पारावार नहीं रहा। सहसा उसका मन पंख लगाकर उड जाने के लिये अधीर हो उठा। ताकि वह शीघ्र ही राजगृही पहुँच जाय। राजा गुणसेन और महारानी प्रियदर्शना को शुभ समाचार पहुँचाने के लिये वह व्यग्र हो उठा। मानसिंह ने भी मन ही मन यह सम्बन्ध निश्चित करने का निर्णय कर लिया। तद्नुसार सुमित्र ने सुवर्ण मुद्राएँ, सुवर्ण श्रीफल और मूल्यवान वस्त्रोपहार प्रदान कर सगाई की रस्म पूरी की। भरे दरबार में सगाई की घोषणा की गयी। सुमित्र को मूल्यवान वस्त्र, रत्नहार आदि बहुमूल्य उपहार भेंट कर राजा मानसिंह ने समधी के विशेष प्रतिनिधि के बतौर उसका यथेष्ट सम्मान कर सदल-बल उसे विदा किया। सुशीला भी आर्द्र दृष्टि से अपने प्रियतम के राजदूत को जाते हुए निर्निमेष नयन निहारती रही और जब वह आंखों से ओझल हो गया तब दीर्घ निश्वास छोड़, महल के गवाक्ष में खिन्न हृदय चहल कदमी करने लगी। अनायास ही उसका मन-पंछी भीमसेन से भेंट करने के लिये व्याकुल... व्यग्र हो उठा। वह आतुर मन प्रियतम की प्रतीक्षा करने लगी। सुशीला सुमित्र के उत्साह का पार नहीं था। यात्रा लम्बी थी। परन्तु अब उसे किसी प्रकार का श्रम अथवा कष्ट अनुभव नहीं हो रहा था। वायुवेग से साँडनी को आगे बढ़ा रहा था। दुपहर में पूर्ववत् आराम करना भी अब उसने छोड़ दिया। वह शीघ्रातिशीघ्र राजगृही पहुँचना चाहता था। न उसे खाने की सुध न पीने की। बस निरन्तर प्रवास करता जा रहा था। आखिर वह अपनी मंजिल पर पहुँच ही गया। कौशाम्बी जाते समय उसे जितना समय लगा था, उससे आधा समय राजगृही __ पहुँचने में लगा। आते ही वह सीधा राज दरबार में पहुँच गया। रास्ते की धूल से सने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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