________________ 256 भीमसेन चरित्र फलतः हे राजन्! प्रथम धर्म का निष्ठापूर्वक आराधन करने से जीव निकट भविष्य में ही पाप-बंधनों का विच्छेद कर मुक्ति प्राप्त करते है। उक्त धर्म सर्व विरति क्रिया रूप है। द्वितीय अणुव्रत धर्म श्रावक वर्ग के लिए सर्वथा सुखदायक है। परिणाम स्वरूप उक्त धर्म की सम्यग् भाव से आराधना करने पर वह भी कालान्तर से शिव-सुख प्रदाता सिद्ध होता है। . जो जीव प्रथम धर्म की आराधना करने में शक्तिशाली नहीं होते, उन्हें द्वितीय अणुव्रत धर्म की निष्ठापूर्वक आराधना अवश्य करनी चाहिए। ___आचार्य भगवंत ने संक्षेप में संयम-धर्म की महिमा की व्याख्या की। उपस्थित श्रोताजनों के मन पर उसका इच्छित परिणाम हुआ। संसार की असारता का वर्णन सुन, हर किसी के हृदय में अनायास ही वैराग्य-भाव का बीजारोपण हो गया। ___ / आचार्यश्री के धर्म-प्रबोधन का राजा सिंहगुप्त पर भी यथेष्ट प्रभाव पड़ा। उन्हें भी संसार की असारता स्पर्श कर गयी। उन्होंने मन ही मन त्याग जीवन अपनाने का निश्चय कर संयम मार्ग ग्रहण करने का निर्णय किया। राजमहल में पहुँचने के अनन्तर उन्होंने दोनों राजपुत्रों को राज्य-प्रशासन के योग्य आवश्यक सूचनाएँ प्रदान की। राज्य. को सुशासित और सुचारु रूप से संचालित करने के रहस्य से अवगत किया। राज-काज के सूक्ष्म तथ्यों से परिचित किया और तत्पश्चात् योग्य समय पर युवराज कामजित् का राज्याभिषेक किया। प्रजापाल की वाराणसी के नूतन युवराज पद पर नियुक्ति की। और सब से प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति प्राप्त कर वे पनी सह आचार्य भगवंत की सेवा में पुनः उपस्थित हुए और शुभ मुहूर्त में राज वैभव का परित्याग कर संयम-मार्ग का अवलम्बन किया। दीक्षा-ग्रहण करने के उपरांत राजा-रानी ने उत्कृष्ट रूप से संयम-धर्म का पालन किया। अप्रमत्त भाव से स्वाध्याय किया। उग्र एवम् उत्कट तपश्चर्या की और अपना अंतः समय निकट आया समझ, अनशन अंगीकार किया। परिणाम स्वरूप अल्पावधि में ही मोक्ष-पद के अनुगामी बन, दोनों ने स्वर्गगमन किया और कालान्तर में समस्त कर्मों का क्षय कर शिव-पद के स्वामी बने। सिंहगुप्त मुनि के स्वर्गगमन का समाचार प्राप्त कर महाराज कामजित् एवम् युवराज प्रजापाल को अत्यंत दुःख हुआ। किन्तु धर्ममय जीवन व्यतीत कर वे अनन्त पद को प्राप्त हुए हैं, ऐसा मान कर अपने दुःखावेग को नियंत्रित कर राज्य-प्रशासन में रत रहने लगे। साथ ही पिता द्वारा प्रदर्शित व अवलम्बित मार्ग का अनुशरण करना योग्य पुत्र का आद्य कर्तव्य है, यों समझ कर दोनों कुमार नीति-नियम से वाराणसी का प्रशासन-भार उठाने में जुटे रहे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust