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________________ आचार्यदेव हरिषेणसूरजी 241 कर्मों का फल पाता है। जब शुभ कर्मों का उदय होता है, तब जीव को अक्षय सुख की उपलब्धि होती है और अशुभ कर्मों का उदय होते ही उसे अनंत यातना और कष्ट भोगने पड़ते हैं।" कर्म के बिना कुछ नहीं होता। कर्म के ही कारण जीव को भव-भवान्तरों का भ्रमण करना पडता है। अनेक प्रकार की अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है। विविध स्वरूप धारण करने पड़ते हैं। और इस तरह वह अनेकविध सुख-दुखों का जाने-अनजाने उपभोग करता है। और इन समस्त कर्मों का जब क्षय होता है तब यह जीव अनायास ही अमरत्व को प्राप्त होता है... शिवगामी बन जाता है। उसके पश्चात् कोई मृत्यु नहीं होती और ना ही जन्म धारण करने का प्रपंच होता है। कर्म-महास्य समझाती केवली भगवंत की धर्म-वाणी अविरत रूप से प्रवाहित हो, श्रोता-वृन्द को स्वर्ग सुख प्रदान कर रही थी। तभी उसमें हस्तक्षेप करते हुए महाराज भीमसेन अपने स्थान पर खडे हो गये। केवली भगवंत का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए उन्होंने विनीत स्वरमें कहा : __ "हे भगवन्त! धरती पर जन्म धारण कर इससे पूर्व मैंने असीम दुःख और यातनाएँ सही है... कदम-कदम पर कष्ट और दुरंत पीडा का अनुभव किया है, ठीक DAIDITIOnlihlil हरि सोमाया हरिषेण केवली की देशना सुनकर कुछ अपने वृत्तांत के बारे में प्रकाश डालने के लिए विनती करते हुए राजा भीमसेना P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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