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________________ भीमसेन चरित्र सुव्यवस्थित आराधना की कचनमय बना दिया 40 ध्ययन-मनन किया था। अनेकविध उग्र तपश्चर्याओं की सव्यवस्थित आराध हों। देह का दमन कर असंख्य अशुद्धियों को भस्मीभूत कर दिया था। ज्ञा र्मयोग ठीक वैसे ही सहज समाधि के माध्यम से आत्मा को भी कंचनमय बना III फलस्वरूप आप स्वयं ही अनेकानेक लब्धियों के अधिपति बन गये थे। किन्तु र भी कभी आपने उक्त लब्धियों का दुरुपयोग नहीं किया था, ना ही स्व-काय भी प्रयोग किया था; बल्कि उन्हें पूर्णतः स्व में गोपनीय रखा था। गिरिराज पर आगमन होते ही आचार्य भगवंत अपने आप ही क्षपक-श्रणा भारोहित हो गये और उन्होंने अशेषघाती कर्मों का क्षय किया। कर्म-बंधन टूटते हा केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। भूत, वर्तमान और भविष्य उन्हें हस्तामलकवत् प्रतीत हा नगा। अतीन्द्रिय ऐसे पदार्थों का दर्शन भी उनके लिए सहज सुलभ बन गया। क्षणाध ही अनेकानेक शंका-कुशंकाओं का नाश हो गया। सब कुछ स्पष्ट एवम् यथावर दृष्टिगोचर होने लगा। आचार्यदेव को केवलज्ञान प्राप्ति होते ही देवराज इन्द्र का सिंहासन प्रकम्पित हा उठा। फलतः इन्द्रदेव ने अवधिज्ञान का प्रयोग कर जब उसका कारण ज्ञात करने का नयल किया तो, आचार्यश्री के केवलज्ञान सम्बन्धित तथ्य से वह अवगत हुए। फलतः तुरंत देवी-देवताओं समेत नूतन केवलज्ञानी के वंदनार्थ तथा केवलज्ञान निमित्त भव्य महिमा करने हेतु वैमारगिरि पर उपस्थित हुए। उनके आनन्द का पारावार न था। देवी-देवताओं ने मिलकर केवलज्ञान-समाचार सर्वत्र प्रसारित कर दिया। देव दुंदुभि नाद किया। पुष्प-वृष्टि की और योग्य स्थान पर सुवर्ण कमल की रचना की। नूतन केवली भगवंत के दर्शनार्थ मानव-मेदिनी उमड पडी। देव, दानव, तिर्यंच और मानव समुदाय का परिषद में आगमन हुआ। सबने भक्तिभाव पूर्वक केवलज्ञानी नगवंत का प्रथम धर्म-प्रवचन श्रवण किया। और प्रवचनोपरांत केवली भगवंत की जय नयकार से पूरा ब्रह्माण्ड गूंजा दिया। तत्पश्चात् कुछ अवधि तक वैमारगिरि पर वास कर केवली भगवंत ने अन्यत्र वहार किया और ग्रामानुग्राम, जनपद व छोटे-बडे राज्यों से गुजरते हुये और वहाँ की नता को सम्यक् धर्म के प्रति आस्थावान बनाते हुए पुनः राजगृही में पदार्पण किया। केवली भगवंत के शुभागमन का समाचार श्रवण कर राजगृहीवासी आनन्दातिरेक झम उठे। सब की हृदय-कलि खिल गयी। महाराज भीमसेन सदल-बल र बका भव्य स्वागत करने के लिए उत्सुक हो, सन्नद्ध हो उठे। उन्होंने केवली भगवंत का भूतपूर्व स्वागत कर उन्हें सह सम्मान नगर प्रवेश कराया। केवली भगवंत ने शिष्य-समुदाय समेत एक सुंदर और मनोहारी उद्यान में पर - धर्म-प्रवचन आरम्भ किया। "हे महानुभाव! यह जगत मात्र कर्माधीन है। प्रत्येक जीव अ कर्माधीन है। प्रत्येक जीव अपने ही शुभाशुभ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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