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________________ 234 भीमसेन चरित्र तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकेंगे। वस्तुतः यह जीवन स्वप्न समान है। क्षणभंगुर और विनश्वर है। पानी के बुबुदे सदृश है। यहाँ जो है सो सब मिथ्या है। सर्वस्व संभ्रम उत्पन्न करनेवाला है। वह सब महिज अल्पज्ञानी सामान्य जनों के समझाने के लिए है। ___अतः विषय-जाल से मुक्त ऐसे सत्य वैभवयुक्त महात्माजन इस विषय-जन्य भोगोपभोग के क्षण को एकांत भयंकर विषज्वर की तरह समझते है। ___ अतः अशरण भावना से त्याज्य ऐसे संसार के सम्बंध में यथोचित विचार कर भवांत करने के एक मात्र केन्द्र समान श्री जिनेश्वरदेव की निरंतर आराधना में रत रहना चाहिए। संसार में रहे सभी जीव. कर्माधीन हैं। अपने-अपने कर्मानुसार जीवन में सुख-दुःख, धूप-छाँव का अनुभव करते है। कोई स्वर्ग से च्यवित होता है, तो कोई दुःखी जीव स्वर्ग-गमन करता है। कोई रंक से राजा बनता है तो, कोई राजा पापोदय के वशीभूत हो, दर-दर की ठोकरे खाता है। हे भव्यजनो! सत्य स्वरूप ऐसी सुन्दर भावना को सदैव हृदय में बसा कर आगम तत्त्वों पर श्रद्धा रखो... उस पर विश्वास रख, जीवनयापन करो। पुत्र-पौत्रादि स्वजन-परिजन जन्म-मृत्यु के भय को दूर करने में समर्थ नहीं है। नरक रूपी नगर-मार्ग को अवरूद्ध करने में परिवार का कोई सदस्य शक्तिशाली नहीं है। ठीक वैसे ही आगंतुक अगणित संकट और यातनाओं का कोई निवारण नहीं कर सकता। और यदि कोई है तो वह केवल धर्म ही है। धर्म ही ऐसी सामर्थ्यशाली शक्ति है, जो जीव को हर प्रकार की विपदा से सुरक्षित रख सकता है। _ विपत्ति रूप अग्नि-दाह से दग्ध यह जीव स्वयं किये गये घोर कर्मों का फल बिना किसी की सहायता से स्वयं ही भोगता है। कदाचित् तुम्हारी यह मान्यता होगी कि ऐसे अथाह दुःख अथवा पाप का निवारण करने में कोई तुम्हारा सहयोगी बनेगा... तुम्हें सक्रिय सहायता प्रदान करेगा तो यह महज तुम्हारी एक कल्पना है। शेष प्रत्येक जीव को अपने किये का फल इच्छा-अनिच्छा वश ही सही भुगतना ही होगा। हे आत्मन्! एकत्व भावना भाने से बिना प्रार्थना के ही जीव को परम शांति का अनुभव होगा। नरकादि भयंकर यातना और दुःखों का शमन होगा। स्वार्थ, अंध, दुष्टता, क्रूरता, एवम् मूर्खता मानव का ममत्व के कारण पतन होता है। अतः प्रायः सुगुरु द्वारा कथित धर्म-तत्त्व का मर्म समझ कर उसे निज जीवन में कार्यान्वित करने का उद्यम करना चाहिए। हे भव्य! जड स्वभाव स्वरूप शरीर से चैतन्य स्वरूप धर्म बिलकुल भिन्न है। अतः मोह-वृत्ति का परित्याग कर विशुद्धात्म-तत्त्व का अनुभव करना सीख। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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