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________________ 230 भीमसेन चरित्र अष्टाह्निका-महोत्सव आयोजित किये। स्थान-स्थान पर स्वामिवात्सल्य का प्रबन्ध किया गया। दीन-दरिद्री और निर्धन-कंगालों को भोजन तथा वस्त्रों का दान दिया गया। सर्वत्र अमारि-घोष किया गया। कतलखाने और बूचडखाने बंद रखे गये। और हरिषेण के हाथों सांवत्सरिक दान दिया गया। हर गली और मार्गों पर बंदनवार बाँधे गये। हाट-हवेली और चौक-चबुतरों को अभिनन्दन-पट्टों से सजाया गया। ठौर-ठौर रंगावलियों की सुन्दर व मनोहारि सजावट की गयी। दीक्षा के शुभ दिन हरिषेण की भव्य शोभायात्रा निकाली गयी। युवराज हरिषेण को सुवर्णालंकारो से शृंगारित गजराज पर आरूढ किया गया। तत्पश्चात् वाद्य-वृन्द की मनभावन धुन और बाजे-गाजे के साथ नगर के प्रमुख मार्ग और हाट-हाजार में वरघोडा फिराया। हर स्थान पर राजगृहीवासियों ने पुष्प, अक्षत एवम् मणि-मुक्ताओं की वृष्टि कर उनका उत्स्फूर्त स्वागत किया। मंगल-गान से राजगृही का परिसर गुंजित हो उठा। शोभायात्रा का विसर्जन कुसुमश्री उद्यान में हुआ। उद्यान के द्वार पर सभी अपने वाहनों का परित्याग कर नीचे उतर गये और पैदल ही आचार्यदेव की सेवा में गये। वहाँ उन्होंने आचार्य भगवंत की भावपूर्वक वंदना की। शुभ घटिका का आरम्भ होते ही आचार्यदेव ने दीक्षाविधि प्रारम्भ की। हरिषेण को आजीवन सामायिक-व्रत अंगिकार करने का आदेश दिया। तत्पश्चात् हरिषेण ने पंचमुष्ठि didunia MIN THIS 'हरि सोमारा शुभ मूहुर्त में आचार्यश्री हरिषेण मुनि को रजोहरण अर्पण कर रहे हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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