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________________ 224 भीमसेन चरित्र अतः हे पुण्यशाली सज्जनों! धर्म की सुन्दर आराधना कर... अहर्निश धर्म-प्रवृत्तियों में रत रहकर अपने मानव-भव को सार्थक करना चाहिए। क्योंकि जब तक तुम्हारी काया स्वस्थ और निरोगी है। वृद्धावस्था तुमसे कोसों दूर है। पांचों इन्द्रियाँ जब तक सतत कार्यरत हैं और आयुष्य का अंत निकट नहीं है, तब तक सुज्ञजनों का परम कर्तव्य हो जाता हैं कि सदैव जागृत रह, आत्मकल्याण अवश्य कर लेना चाहिए। जब चारों ओर प्रलयकारी आग लगी हो... आसपास का परिसर धुं-धुं जल रहा हो तब कुआ खोद कर उसे बुझाने का प्रयल करना तो निरी मूर्खता कही जाएगी? बुद्धिमान व्यक्ति भला ऐसा कर क्या साधेगा? ठीक उसी तरह जब शरीर रोगग्रस्त हो गया हो, आँख की रोशनी कम हो गयी हो, कान से सुनायी नहीं देता हो, हाथ-पाँव कम्पित हो, सीधे स्थिर खडे रहने की शक्ति न हो और मृत्यु सन्निकट होने का निरंतर आभास होता हो, ऐसी विषम परिस्थिति में भला तुम अपना आत्म-कल्याण कर सकोगे? अतः यही अवसर है जागृत होने का... प्रमाद और आमोद-प्रमोद का, परित्याग करने का और आत्मधर्म की यथेच्छ आराधना करने का। सो हाथ आये अवसर को जाने न दो। स्मरण रहे, हमारा आयुष्य तो मात्र एक जल की बूंद सदृश है, जो प्रायः अस्थिर है और है बुलबुले की भाँति क्षणभंगूर। वैसे ही राज्यादि वैभव विद्युत-ज्योति के समान है। अतः जो वास्तविकता को नहीं समझता और प्रायः प्रमादयुक्त होता है, वह मूर्ख सदैव के लिए मानव-भव हार जाता है... पराजित हो जाता है। उसी भाँति जो मुर्ख स्वर्ग के द्वार खोलनेवाली एकमेव शक्ति धर्म का सेवन नहीं करता, वह वृद्धावस्था से पीडित और पश्चात्ताप से उत्फेणित हो; निरंतर शोकाग्नि की दारुण-ज्वालाओं से प्रज्वलित होता है। हे महानुभाव! तभी कहता हूँ कि हमेशा गुरु-वाणि में एकाग्र हो, उनके वचनों पर श्रद्धा रखो। गर्भावास के दुःसह्य दुःख और नारकीय यातनाओं का स्मरण करो और भविष्य में ऐसे कष्टों को बार-बार सहना न पडे। अतः प्रमाद का पूर्ण तया परित्याग कर दो। क्योंकि जो मूर्ख हैं। उनका सारा समय प्रमाद में ही व्यतीत होता है। वे अपना जीवन व्यसन और विषय-वासना में ही नष्ट कर देते हैं। इससे ठीक विपरीत तत्त्वज्ञानी, सुज्ञजन और विचारवान् आत्माएँ अपना पूरा समय आत्म-चिंतन तथा शुभ कार्यों को कार्यान्वित करने में व्यतीत करते हैं। धरती पर जिन-जिन दिग्गज पंडित और विजिगीषु आत्माओं ने जन्म धारण किया हैं, अन्त में वे सब मृत्यु के अधीन हुए हैं। यहाँ पर कोई अमर-पट्ट लिखा कर नहीं आया। परंतु जो धर्म-मार्ग के अनन्य पथिक बन गये हैं, उनका ही जीवन सफल हुआ है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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