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________________ गौरवमयी गुरूवाणी 217 चन्द्रवती युवक के विचारों में इस भाँति खो गयी थी कि उसे दासी के समीप आने की भी जानकारी नहीं रही। दासी अत्यन्त चतुर थी। वह रानी के मनोभावों को पढ रही थी। उसने रानी की एकाग्रता को भंग करना उचित नहीं जाना। जब रानी को दासी की उपस्थिति का आभास हुआ तो बोली “अरे! तू कब से खडी है?" 'महारानीजी' मैं कब से ही यहाँ खडी हूँ। आपको विचार मग्न जानकर आपकी तन्द्रा को भंग करने का मैं भला दुस्साहस कैसे करती। 'मेरा एक काम करोगी?' रानी ने रहस्यमय स्वर में कहा। 'क्या? आपके हर आदेश * की अनुपालना करना मेरा प्रथम कर्तव्य है। आप आदेश दे। कहे तो उस युवक से आपकी भेंट करवा दूँ। दासी ने रानी के समीप जाकर कान मे गुसपुसाते हुये कहा। _ 'अरी! तुझे कैसे ज्ञात हुआ कि मैं इस युवक को लेकर विचारमग्न हूँ। खैर कोई बात नहीं तू इस युवक के बारे में जानकारी लेकर आ। मैं एक पत्र देती हूँ जो उस तक पहुँचाना नहीं भूलना। रानी ने सावधानी बरतते हुये कहा। साथ ही दासी को सजग . किया कि इस घटना की जानकारी चार दिवारों को भी नहीं हो। __सज्जनों। तनिक विचार करों। रानी चन्द्रवती परिणीता है। राजरानी है। कुलवधू है। इसके उपरांत भी पर पुरुष के प्रति कामांध बन गयी है। अतः दासी को बात गुप्त रखने का आदेश देती है। रानी इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि इस दुष्कर्म की भनक भी महाराजा को पड गयी तो उसका व दासी का जीवन शेष नहीं रहेगा। भक्तजनों! इस संसार में रानी के समान अनेक प्राणी है, जिनको पाप से भय नहीं लगता है। व्यक्ति को पाप से डरना चाहिये। उसके स्थान पर पापकर्म करते रंगे हाथों पकडे जाने का भय है। ____ मनुष्य पाप कर्म अवश्य करता है। परन्तु सावधानी भी रखता है, कि उसके इस कर्म की किसी के कानों कान खबर न हो। परन्तु पाप क्या कभी पर्दे में रह सकता है? सांसारिक प्राणियों की आखों से वह भले ही चूक सकता है। परन्तु कुदरत की आँखो से भला कोई कहाँ बच सका है। ___ दासी ऐसे कार्य में कुशल थी। रानी की संदेशवाहिका बन कर वह युवक के महल में गयी। उससे भेंट कर उसका परिचय प्राप्त किया। रानी का पत्र उसके हाथों में थमा दिया। पत्र प्राप्त कर युवक क्षण भर के लिये असमंजस्य में पड़ गया। अब क्या किया जाय? रानी ने पत्र में स्पष्ट लिखा था कि यदि तम मेरी विरह वेदना को शांत नहीं करोगे तो मैं तुम्हारी याद में विरह वेदना से त्रस्त होकर प्राणोत्सर्ग कर दूँगी। और मेरी मृत्यु के कारण तुम होंगे। साथ ही स्त्री हत्या के पाप के भागीदार माने जाओगे। अतः हे चित्तचोर मैं आशा करती हूँ कि तुम अवश्य ही मेरी कामना पूरी करोगे, पत्र को पढने के पश्चात् युवक को सहज ही कुछ स्मरण हो आया। उसकी स्मृति ताजा हो उठी। उसने पूर्व में कही सुना था कि कामांध लोग कुल मिलाकर दस प्रकार के होते है। उनमें शारीरिक विकार उत्पन्न होता है। शनैः शनैः वह इन दस दशाओं में से गुजरता है। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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