________________ गौरवमयी गुरुवाणी 215 अद्भूत आनन्द का मैं अनुभव कर रहा हूँ। लो यह रलहार! तुम्हारी बधाई का उपहार। मैं शीघ्रातिशीघ्र उनके दर्शनार्थ आ रहा हूँ। तब तक तुम आचार्यश्री का यथोचित आदर सत्कार का प्रबन्ध करना। उनकी आवश्यकताओं को शीघ्र ही पूरा करना। संतो की सेवा का लाभ कभी भी मिथ्या नहीं जाता। द्वारपाल ने स्वीकार कर विदा ली। भीमसेन स्वंय आचार्यदेव के वंदनार्थ उद्यान गमन के लिये उत्सुक थे। मंत्रीश्वर को बुलाने की आज्ञा दी। हरिषेण, देवसेन केतुसेन व महारानी सुशीला आदि को आचार्य भगवंत के आगमन का संदेश पहुँचाया गया मंत्रीश्वर के आते ही भीमसेनने आदेश दिया 'हमारी सेना को तैयार होने की तत्काल आज्ञा दीजिए। अभी इसी समय हमें कुसुमश्री उद्यान के लिए प्रयाण करना है। जहाँ आचार्य भगवंत श्री धर्मघोषसूरीजी महाराज का पदार्पण हुआ है। "जैसी आपकी आज्ञा।" आवश्यक व्यवस्था करने के निर्देश देने के लिये मंत्री लौट गये। इसी बीच हरिषेण, देवसेन, केतुसेन व महारानी सुशीला भी आ पहुँचे। महाराज भीमसेन ने गजारूढ हो सपरिवार सदल-बल कुसुमश्री उद्यान की ओर प्रस्थान किया। उद्यान के निकट आते ही भीमसेन हाथी से नीचे उतर गये। राजमुकुट उतार कर अपने हाथों में ले लिया। नंगे पैर भक्तिभाव से परिवार जन के साथ उद्यान में प्रवेश किया। सर्व प्रथम सभी ने आचार्यश्री को 'पंचाग प्रणिपात पूर्वक वंदना की। तत् पश्चात् अन्य मुनिजनों को वंदना कर विनय पूर्वक करबद्ध हो आचार्यश्री से प्रार्थना की NE HinITBHIMWatula S रत्न के निर्दोष आसन पर बिराजमान होकर - संसार के ___ वास्तविक स्वरूप को बतलाते हुए आचार्य महाराज। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust