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________________ संसार एवं स्वप्न 11 स्वप्न की बात सुनकर सभी हर्षविभोर हो उठे। सभाजन हर्षातिरेक से परस्पर बतियाने लगे। “वास्तव में रानी ने सुन्दर स्वप्न देखा है।" "अवश्य! लाभ अपूर्व होगा।" "अरे! लाभ क्या, महालाभ होगा... महालाभ! क्योंकि रात्रि के अन्तिम प्रहर में पड़ा स्वप्न मिथ्या सिद्ध नहीं होता।" "किन्तु रानि को भला ऐसा क्या बड़ा लाभ होगा? नैमित्तिक भी एक दूसरे के कान में फुसफुसाते हुए परस्पर रानी के स्वप्न की चर्चा कर उसके योग्य फलादेश के सम्बन्ध में विचार विमर्श करने लगे। अल्पावधि तक आपस में गहन चर्चा करने के उपरान्त एक शकुन शास्त्री ने खड़े होकर कहा - "हे राजन् आपकी कीर्ति सदैव अमर रहे। विगत रात्रि में महारानी ने जो स्वप्न देखा है, वह अति उत्तम हो परम् मंगलकारी है। वैसे स्वप्न शास्त्र में कुल बहत्तर प्रकार के स्वप्न बताये है। जिसमें से तीन प्रकार के स्वप्नों की उत्तम स्वप्नों के रूप में गणना की गयी है। यदि इनमें से कोई पदार्थ स्वप्न में दिखाई दे तो स्वप्न देखने वाले व्यक्ति को उसका यथेष्ट लाभ प्राप्त होता है। शेष रहे बयालिस प्रकार के स्वप्न अशुभ माने आते हैं। इनमें से कोई स्वप्न देखने पर व्यक्ति को भारी नुकसान होने की पूरी सम्भावना होती है। किन्तु महारानी ने जो स्वप्न देखा है, उससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। स्वप्न में जो स्त्री सूर्य बिम्ब का दर्शन करती है वह उत्तम गुणों से युक्त पुत्र को जन्म देती है। यह स्वप्न शास्त्र का अमोघ नियम है। उसमें भी महारानीजी ने तो रात्रि के पिछले पहर में सर्वोत्तम कान्ति युक्त सूर्य बिम्ब के दर्शन किये है। महाराज, यह शुभ संकेत है। वह शीघ्र ही गर्भवती होंगी और जो पुत्र जन्म लेगा वह वृहस्पति के समान बुद्धिशाली होगा, साथ ही महा पराक्रमी होगा। समकालीन समाज, प्रजा और राजा-महाराजाओं में उसका प्रभाव दिन दुगुना रात चौगुना होगा। इसके उपरान्त वह धीर व वीर होगा। अपने बाहूबल से ही वह कीर्ति अर्जित करेगा और उभय वंश को उज्ज्वलित करेगा।" ___ स्वप्न का फलादेश सुनकर राजा व रानी की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। अभी पुत्र जन्म होना तो बाकी है। और ना ही ऐसे कोई चिन्ह प्रियदर्शना में दृष्टिगोचर हो रहे थे। तथापि ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो आज ही पुत्र जन्म हो गया हो! गुणसेन ने प्रसन्न होकर नैमित्ति को अपने गले का बहुमूल्य हार उतार कर भेंट स्वरूप प्रदान किया। प्रियदर्शना ने भी स्वर्णहार भेंट कर उनका सम्मान किया। .गुणसेन ने अन्य शकुन शास्त्रियों को भी खुले हाथों स्वर्ण मुद्राएँ तथा कीमती भेंट व सौगात देकर सम्मान किया। नैमित्तिकों ने भी राजा व रानी की यथेष्ट स्तुति कर मंगल आशीर्वाद प्रदान किये। उस दिन की राजसभा इसी चर्चा के साथ विसर्जित हुयी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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