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________________ वही राह वही चाह 203 स्थान - स्थान पर उनके स्वागत के लिये जन - मेदिनी उमड पडती थी। नगरजन सोल्लास भीमसेन का स्वागत करते और बहुमूल्य उपहार भेंट करते अपनी हार्दिक प्रसन्नता अभिव्यक्त करते नहीं अघाते थे| कन्याएँ और सन्नारियाँ हर्षित हो केतुसेन भीमसेन व देवसेन के भाल-प्रदेश पर कुंकुम - तिलक करती और मंगल-गीत गाकर विजय की कामना करती। ठीक वैसे ही सहस्रशः कंठ उल्लसित हो भीमसेन का जयनाद कर व्योम-मंडल को गूंजायमान कर देते थे। यात्रा निरंतर जारी रही। अत्यन्त आवश्यकता होने पर ही किसी स्थान पर सेना पडवा डालती थी, वह भी एकाध दिन के लिये। बिना कही रुके कूच जारी रही। राजगृही अब अधिक दूर नहीं थी। महज एक जंगल का अन्तर था। अतः जंगल पार करने का अर्थ था राजगृही पहुँचना। "देवसेन! इस जंगल को पहचानते हो?" भीमसेन ने प्रश्नार्थ मुद्रा से पूछा। "कैसे नहीं पहचानता? यही कही हमने किसी पर्ण कुटिर में रात्री विश्राम किया था। " देवसेन ने पुरानी स्मृतियों को ताजा करते हुए गंभीर स्वर में कहा। "देवसेन! देखा न समय का प्रभाव। एक दिन वह भी था जब ठंड से ठिठकते व हिंसक पशुओं के डर से कांपते हुए हमने यहाँ रात्री व्यतीत की थी। यात्रा की थकान से शरीर शिथिल हो गया था। मारे मुख से पेट पीठ से चिपक गया था। खुले आसमान के नीचे पथरिली धरती बिछौना था। आज पुनः इसी जंगल में रात्री विश्राम कर रहे है। किन्तु आज हमारे पास क्या नहीं है? हमारे आदेश के पालनार्थ अनेक सेवक हाथ बांधे खडे हैं। संतरी, सुभट, सैनिकगण रात्री जागरण कर रहे हैं। हमें किसी प्रकार की असुविधा न हो इसलिये शिबिर की रचना भी कितनी सुंदर की है।" सहसा भीमसेन बिगत जीवन के कडुवे अनुभवों का स्मरण कर गहरे विचारों में खो गया। सही अर्थ में यह सब कर्म का ही खेल है। मानव तो उसके हाथ की कठपुतली मात्र है। वैसे उसकी डोर तो उसके ही हाथों में है। जैसा यह नाच नचाता है हमें विविश होकर ही करना पडता है। पूर्वभव में हमने अवश्य ही कोई पाप कर्म किये होगें। वर्ना वही जंगल है। कुछ भी तो परिवर्तन नहीं हुआ है। हम सब भी वही हैं। तथापि भूतकाल की और आजकी परिस्थिति में कितना अन्तर हैं। इसे ही कहते है समय की बलिहारी। उक्त रात्रि हमारे अशुभ कर्म के उदय की अमंगल रात्रि थी। और यह रात्रि शुभ कर्मो के उदय की है। उस घडी पाप का उदय हुआ था और आज पुण्योदय। निःसंदेह दोनों ही स्थितियों का हमें भरपूर अनुभव हो गया है। उन्हे भोगते हुए हमने अपने यौवन तथा जीवन के उत्कृष्ट क्षणों का बलिदान दिया है। अतः पुत्रो! इस घटना से यही शिक्षा लेना कि यह संसार - असार है... यहां न दुःख कभी स्थिर है और ना ही सुख। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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