________________ 202 भीमसेन चरित्र / था बन्ध होठ प्राप्त सत्ता की सूचना दे रहे थे। पूर्ण तैयारी के अनन्तर दोनों ही कुंवर भीमसेन की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण किया। मन ही मन अपनी सती - साध्वी मातुश्री का अभिवादन किया और तत्पश्चात् दोनों श्वेताश्वों पर आरूढ हो, प्रस्थान के लिये सन्नद्ध हो गये। भीमसेन भी प्रवास के लिये शीघ्रताशीघ्र तैयार हो गया। यात्रा की पूरी तैयारी हो गयी। सबसे आगे भीमसेन का अश्व था। दोनों कुमारों ने भीमसेन का अनुसरण किया। उनके पीछे सैनिकों के अश्व। भीमसेन ने अश्व की रास खींची। स्वामी का इशारा पाते ही अश्व चल पडा। सेना ने जयघोष किया : “महाराजाधिराज राजगृही नरेश की जय।" "महाप्रतापी कुंवर देवसेन की जय।" महाराजा केतुसेन की जय।" भीमसेन ने मन ही मन नवकार मंत्र का स्मरण किया। श्रद्धा भाव से पंचपरमेष्ठि का अभिवादन किया। तब सेना ने अगले पडाव के लिये कूच किया। साथ में सहस्रावधि सैनिक थे। अनेक परिचारक और पाकशास्त्री थे। इस तरह चतुरंगिणी सेना के साथ भीमसेन राजगृही की दिशा में वायुवेग से बढ रहा था। हाथी, घोडे, बैल, रथ, बैलगाडियों के साथ पड़ाव पर पडाव करती सेना आगे बढती हुई अपने पीछे धूल भरे गुबार उडाती जा रही थी। अनेक ग्राम, नगर नदी-नालि और मैदान पार करती हुई राजगृही की और वेग से बढ़ रही थी। CTURE IPPA त -SIG ठरि साप्रमुग U NREL राजगृही की जनता जब भीमसेन के दर्शन के लिए लालायित हैं, उस वक्त राजगृही के समीप आ पहुंचे महाराजा भीमसेन। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust