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________________ 198 भीमसेन चरित्र ___ एक सुन्दर रूपवती स्त्री को शोक संतप्त करूण स्वर में रोते देरव ठिठक गया। युवती के नेत्रों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। केशबन्ध खुल गया था। देह का सौन्दर्य अन्धेरी रात में एकाध प्रदीप्त दीपक की भाँति चमक रहा था। हृदय को प्रकम्पित कर दे ऐसे स्वर में रुदन कर रही थी। ऐसा करुण दृश्य था कि किसी का भी हृदय अनुकम्पा से झुमड पडे। भीमसेन का हृदय आर्द्र हो गया। भीमसेन युवती से कुछ दूरी पर खडे रहे, उसने ममतामयी आवाज में पूछा।“क्या बात है देवि? तुम अर्द्धरात्री में क्यों विलाप कर रही हो? कौन हो?" किन्तु उत्तर देने के बजाय युवती और ऊँचे स्वर में विलाप करने लगी। जमीन पर सर पटक पटक कर पछाड खाने लगी “मत रो बहन| मत रोओ! तुम मुझे अपना दुःख दर्द कहो। ऐसा क्या कारण है कि तुम यो शोक कर रही हो? मैं यथाशक्ति तुम्हारी सहायता करूँगा। शुभ चिंतक समझ तुम मुझे अपनी सारी विपदा सुनाओ।" "अरेरे। मैं तो लुट गई! बर्बाद हो गयी। मेरा सर्वनाश हो गया। न जाने अब मेरा क्या होगा? मैं कहाँ जाऊँगी? हे भगवान तुम्हें यह क्या सुझा। मेरा तो जीवन ही नष्ट हो गया।" और युवती ने पुनः जोर जोर से विलाप करना आरम्भ कर दिया। | "मुझे बताओ? किसने तुम्हें लूटा? तुम्हारा जन्म किसने बिगाडा? देवि! जो भी बात है स्पष्ट कहो। मुझसे तुम्हारा यह करुण रुदन देखा नहीं जाता। तुम रोना बन्द करो।" भीमसेन ने स्नेह सिक्त स्वर में कहा। "हाय! मैं आपको दुःख कैसे कहूँ? मैं तो आपको पहचानती तक नहीं हूँ। आप मेरे लिये अजनबी है और किसी अपरिचित को अपनी व्यथा कहने से भला क्या लाभ? आह! अब मेरा क्या होगा?" युवती अपनी वेदना को कहती पुनः रुदन करने लगी। "देवि! मैं राजगृही का नरेश हूँ। मुझ पर विश्वास रखो। और अपने दुःख का कारण निसंकोच बताओं। मैं अपनी सामर्थ्यानुसार तुम्हारी सहायता करूँगा।" __अपने सम्मुख राजगृही नरेश को खडा देख युवती ने रोना बन्द कर दिया। खुली केश राशि को तुरन्त ही समेट कर पीठ पर डाल दिया। बहते आँसुओं को पौंछ कर गद्-गद् स्वर में कहने लगी। "हे नरेश! मेरे दुःखों का पार नहीं। मैं तो यौवन में ही लुट गई। क्रूर विधाता ने मेरे साथ अन्याय किया है। उसने मेरे साथ दुःखद खेल खेला और मैं अपनी बाजी हार बैठी। अब तो हे कृपालु। आप ही मेरा उद्धार कीजिए। आप ही मेरी जीवन नौका को पार लगा कर मेरे अक्षत यौवन को बचा सकते है। आपका यह उपकार मैं जन्म जन्मांतर तक नहीं भूलूंगी।" "परन्तु देवि! तुम अपनी व्यथा को स्पष्ट तो करो। यो पहेली सुझाने से कैसे ज्ञात होगा कि तुम्हे क्या दुःख है। कैसी विपदा तुम पर घिर आई है। अतः अपना पूरा वृतान्त सुनाओ भीमसेन ने कहा। "हे करुणासिंधु। मैं एक विद्याधर कन्या हूँ। वैताढय पर्वत पर विजय नाम का एक नगर है। जहाँ मेरे पिता P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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