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________________ भीमसेन चरित्र दंश मारा है? या किसी प्रकार की असुविधा के कारण नींद खुल गयी है?" परन्तु इसके लिये उसे और अधिक नहीं सोचना पड़ा। उसे सहज ही स्मरण हो आया कि वह तो स्वप्नलोक की यात्रा में विमग्न थी।" ऐसा क्या स्वप्न था, जिसके कारण अचानक उसकी आँखें खुल गयी?" उसने मन ही मन विचार किया - अभी स्वप्न देखा था और उसको देखने के पश्चात् ही नींद खुल गयी थी। उसे स्मरण हो आया कि स्वप्न में उसने निर्मल एवं विशाल आभा से झुके परम - ज्योतिर्मय सूर्य बिम्ब देखा था। तभी रानी को सहसा अहसास हुआ कि बाहर सूर्य की किरणें चमक रही है और वह अभी तक सो रही है। "अरे! सुबह हो गयी और वह अब तक लेटी है। उफ्! उठने में बहुत विलम्ब हो गया।" वह हड़बड़ाकर पलंग में उठ बैठी। आँख खोल कर देखा तो ज्ञात हुआ कि अभी तो रात्रि का प्रथम प्रहर चल रहा है। और वह तो स्वप्न देख रही थी। प्रातः होने में अभी पर्याप्त समय शेष है। “अब भला क्या हो सकता है? तो क्या दुबारा सो जाऊँ?" किन्तु प्रियदर्शना सो न सकी। क्योंकि वह भलीभाँति जानती थी कि उसने एक शुभ स्वप्न के दर्शन किये है। स्वप्न में उसने मंगलमय शुभ प्रतीक देखा है और इससे अवश्य लाभ होगा। साथ ही उसे यह भी ज्ञात था कि, शुभ स्वप्न देखने के पश्चात् यदि पुनः सोया जाय तो स्वप्न का फल नहीं मिलता, अतः स्वप्न दर्शन पश्चात् नवकार मंत्र का स्मरण करना चाहिए और स्वप्न की बात किसी योग्य और जानकार व्यक्ति के समक्ष प्रकट कर, कपड़े के गाँठ बाँध देनी चाहिए। ऐसा करने से स्वप्न का फल अवश्य प्राप्त होता है। के फल स्वरूप प्रियदर्शना शांत रह, मन ही मन नवकार मन्त्र का स्मरण करने में खो गयी। इसी तरह ठीक-ठीक अवधि बीत जाने के बाद वह अपने पति के शयन कक्ष की ओर बढ़ गयी। ताकि स्वप्न दर्शन की बात उन्हें बता सके। उस जमाने में पति-पत्नी एक ही शैया पर साथ में शयन नहीं करते थे। तद्नुसार राजा गुणसेन भी दूसरे कक्ष में सोये हुए थे। सुबह का प्रथम प्रहर था। गुणसेन प्रतिदिन की तरह आज भी जाग गये थे। वे आत्म चिन्तन में लीन थे। प्रियदर्शना ने कक्ष में प्रवेश कर गुणसेन को प्रणाम कर उनके चरण स्पर्श किये और दोनों हाथ जोड़ कर कुछ कहने की मुद्रा में एक ओर खड़ी हो गयी। अचानक प्रियदर्शना को अपने कक्ष में प्रवेश किये देखकर गुणसेन के आश्चर्य का पारावार न रहा। आज से पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ था। यह पहला अवसर था, कि वह यों एचानक उसके कक्ष में आयी थी। फलतः आश्चर्य चकित हो उसने पूछा- "देवी! तुम? अभी कैसे? स्वस्थ तो हो? तुम्हें यों अचानक देखकर मेरे मन में हजारों प्रश्न उठे हुए हैं। कहो, किस कारण आना हुआ। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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