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________________ संसार एवं स्वप्न वह स्त्री के सहज चरित्र से एकदम अलग थी। उसमें रूप का अभिमान नहीं था। जितना रूप था उससे हजार गुणा विनम्र और सुशील स्वभाव की थी। दास दासियों के साथ विनम्र व्यवहार करती। यों कहें कि वह शील व चरित्र की श्रेष्ठतम प्रतिमूर्ति थी। राजकुल में उत्पन्न व राजा की प्रिय रानी होने पर भी उसमें उच्छृखलता अथवा उद्ण्डता के कमी दर्शन नहीं होते थे। संयम व सादगी की वह मूर्तिमान प्रतीक थी। संस्कार वश वह जैन धर्मावलम्बी थी। राजा गुणसेन भी जैन धर्म का अनन्य भक्त था। यथाशक्ति दोनों धर्म का पालन करते रहते थे। नित्य प्रति श्रमण भगवन्तों की सेवा सुश्रुषा करते और व्याख्यान भक्ति का लाभ उठाते। दोनों का संसार अत्यन्त सुखी था। दोनों परस्पर समरस होकर जीवन का अपूर्व आनन्द उपभोग करते थे। आपस में किसी प्रकार का संघर्ष अथवा आन्तरिक क्लेश न था। इस प्रकार वे दोनों यौवन में आकण्ठ डूबे जीवन यापन करते थे। एक दिन की बात है, प्रियदर्शना अचानक जग पड़ी। रात्रि का अन्तिम प्रहर था। जागृतावस्था में उसने अनुभव किया कि वह स्वर्ण पलंग पर लेटी है और दीपक की रोशनी मंद मंद झिल मिला रही थी। बाहर खुले आकाश में तारे चमक रहे थे और वह अपने शयन खण्ड में अकेली ही लेटी थी। रानी मन ही मन सोचने लगी - "मै भला कैसे जग पड़ी? यों मेरी नींद अचानक उचटने का क्या कारण है? क्या कहीं किसी ने 1 A रात्रि में सूर्य का स्वप्न देखती हुई महारानी प्रियदर्शना। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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