________________ 134 भीमसेन चरित्र जौहरियों ने रत्नों को उलट-पुलटकर देखा और रत्नों का यथोचित मूल्यांकन किया। किसीने तीन लाख, किसीने चार लाख तो किसीने पाँच लाख तक उसकी कीमत बताई। अलबत भीमसेन को यह विश्वास था कि इसका मूल्य इससे कई गुना अधिक है। अंत में एक व्यापारी ने इसका मूल्य नौ लाख आँका। “भाई! इन रत्न और हीरों की कीमत नौ लाख रुपये होगी। मैं इससे अधिक नहीं दे सकता। यदि तुम्हारी इच्छा हो तो इनका सौदा कर सकते हो।" जब कि भीमसेन की दृढ़ धारणा थी, कि कम से कम दस लाख रूपये तो इनकी कीमत अवश्य होगी। इधर छः लाख से अधिक का मूल्य किसी जौहरी ने नहीं आँका था। मात्र इसी जौहरी ने नौ लाख का मूल्य आंका है। अतः कुछ समय तक अधिक मूल्य पाने के लिये जौहरी के साथ रक झक कर अन्ततः रत्नों का सौदा कर दिया। भीमसेन नौ लाख रूपये लेकर सेठ के पास लौटा और उसने विनय पूर्वक सारी जानकारी उन्हें दी। सेठ तो भीमसेन की इमानदारी पर गद्गद् हो उठा। उसके मन में विचार आया : 'यह कितना इमानदार पुरूष है। नौ लाख के स्थान पर अगर इसने मुझे चार-पाँच लाख रूपये ही दिये होते तो भी मुझे भला इसकी क्या जानकारी होती? अतः मुझे इसका योग्य सम्मान करना चाहिए।" "भीमसेन! वाह तुमने तो कमाल ही कर दिया! मैं तुम्हारी इमानदारी का भला कैसे ऋण चुकाऊँगा। तुमने आज निहायत ही अच्छा काम किया है। अतः इन रनों की पूरी रकम तुम अपने ही पास रख लो। और जैसे उचित लगे वैसे खर्च करना। ये तुम अपना पारिश्रमिक ही समझना। और अब जितने भी रत्न तुम तराशोगे वह मेरे होंगे। शेष सब पर तुम्हारा ही अधिकार होगा।" भीमसेन ने उपकार-वश उक्त रकम स्वीकार कर दूसरे दिन पुनः काम पर लग गया और सेठ को अनेक रन तराश कर दिये। तत्पश्चात् एक दिन भीमसेन ने कहा : “सेठजी अब इस भूमि में और अधिक रल नहीं रहे। अतः मुझे जाने की अनुमति दीजिए।" सेठ ने भीमसेन को भावभीनी विदाई दी। लौटते समय भीमसेन काफी उदास हो गया। वह रह रह कर सेठ का उपकार मानने लगा। और उनसे आज्ञा प्राप्त कर तेज गति से बढ़ गया अपने परिवार से मिलने के लिये। उसके आनन्द का पारावार न था। विधाता! ऐसा कब तक? भीमसेन छः मास का वादा करके गया था और देवसेन केतुसेन की पूरी जिम्मेदारी सुशीला पर आ पड़ी थी। एक समय की राजरानी आज राह की भिखारिन बनकर दर-दर की ठोकरें खा रही थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust