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________________ 128 भीमसेन चरित्र चाहिए। क्योंकि एक बार मृत्यु वरण करने के पश्चात सब कुछ समाप्त हो जाता है। जीवित रह कर मनुष्य कुछ प्राप्त कर सकता है, कुछ कर्म कर सकता है। इसलिये भाई तुम निराश मत हो - हिम्मत का दामन मत छोड़ा। "हे परोपकारी! मैं यह सब समझता हूँ। किन्तु क्या करू? अनन्त दुःख और नारकीय यातनाओं ने मेरी बुद्धि ही कुंठित कर दी है। मुझे अविवेकी और अविचारी बना दिया है। साथ ही मेरे बच्चे और पली के दुःखों से मैं चिन्तातुर हो उठा हूँ। मैं भला उन्हें किस तरह सुख पहुँचाऊँ यही एक चिन्ता मेरे मन को खाये जा रही है।" भीमसेन ने व्यथित होकर कहा। "अरे, असह्य दुःख और यातनाओं से हार मान कर अविवेक पूर्ण साहस करने से भला क्या लाभ? अन्त में उसका परिणाम बुरा ही आता है और पूर्व में जो दुःख थे उनसे भी अधिक दुःखों का भार और बढ़ जाता है। तनिक विचार करो, श्री रामचन्द्रजी ने गर्भवती सीता को वनवास में भेज दिया। नल दमयन्ती को भटकने के लिये वन में सोते छोड़ गया। सत्यवादी हरिश्चन्द्र ने सगर्भा हिरणी का वध किया। पांडवों ने दुस्साहस कर द्रोपदी को जुए के दाव पर लगा दिया। किन्तु अन्त में इन सब को क्या मिला? किस उपलब्धि से उनका कल्याण हुआ? इन्होंने स्वयं ही दुःखों को निमंत्रण दिया और फिर आजीवन पछताते रहे। फलतः सभी को विवेक बुद्धि से काम करना चाहिए। फिर दुःख किस पर नहीं आता? अच्छे अच्छे चक्रवर्ती राजाओं... स्वयं तीर्थंकरों को भी दुःख की ज्वाला में तपना पड़ा है तो फिर उनकी तुलना में हमारे तुम्हारे जैसे सामान्य प्राणियों की क्या बिसात? सुख-दुःख का तो जोड़ा है। कभी सुख तो कभी दुःख। जैसे कर्म वैसे फल| शुभ कर्मों का सदैव शुभ फल प्राप्त होता है। ठीक इसके विपरीत अशुभ कर्म के अशुभ फल निश्चय ही मिलेंगे। यह तो सृष्टि का शाश्वत नियम है। अतः “हे भव्यात्मा! तुम समभाव को धारण करो। अपने दुःखों से दुःखी मत हो। यह सब तुम्हारे अशुभ कर्म का ही परिणाम है। जीवन में सहिष्णु बनो। शांति धारण करो। अधीर मत बनो। जब तुम्हारे पुण्य प्रकट होंगे, तभी तुम्हारे समस्त दुःखों का अन्त होगा।" भीमसेन को सेठ ने बड़ी सहदयता पूर्वक समझाया। भीमसेन ने विगत लम्बी अवधि से ऐसे दयालु प्रकृति के पुरुष के दर्शन नहीं किये थे। ऐसी कोई मृदु वाणी नहीं सुनी थी। ऐसे शास्त्र प्रेरक एवम् हृदय को शांति देने वाले मधुर वचन कान पर नहीं पड़े थे। राजगृही छोड़ने के पश्चात् उसे दर दर की ठोकरें खानी पड़ी थीं। उसे हर स्थान से कटुता ही मिली थी। लक्ष्मी पति सेठ के कटु व कठोर वचनों को वह सुनकर आया था। धनसार सेठ ने उसे एकदम ही झूठा व उचक्का प्रमाणित कर दिया था। राजा अरिंजय व जीतशत्रु ने उसे निराशा के गहरे सागर में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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