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________________ सुशिला की अग्नि परीक्षा पत्नी को आवश्यक सूचना व सलाह देकर श्रेष्ठीवर्य भीमसेन के साथ दूकान पर लौट आये। कहावत है कि, सेठ की सीख द्वार तक, यहाँ पर भी यही हुआ। सेठ के दुकान चले जाते ही भद्रा ने तुरंत अपना असली रुप दिखाया। सुशीला की भी इसी क्षण से अग्नि परीक्षा आरम्भ हो गई। ___ "अरी ओ अभान बांस के समान खड़ी क्यों है। कान खोल कर सुन ले, मेरे घर तुम्हारा यह सेठानीपन नहीं चलेगा। चल जल्दी कर। तु अपने इन नगाड़ो को खेलने भेज दे। अभी तो कितना सारा काम पड़ा हुआ है। भद्राने बे बजह ही सुशीला को धमका डाला। - सुशीला भद्रा की ऐसी कठोर वाणी सुन भयभीत हो गई। ऐसे कठोर शब्द सुनकर उसके हृदय को भारी आघात लगा। साथ ही इसमें उसने अपना अपमान भी महसूस किया। परंतु इस समय आत्म सम्मान का प्रश्न ही कहाँ उठता है। अतः मौन रहकर उसने सेठानी के कठोर व कडु शब्दों को सुन लिया। बालकों को उसने अपने से दूर कर दिया और काम में लग गयी। परंतु दोनों कुंवर माँ से अलग होना नहीं चाहते थे अतः वे रोते हुए कहने लगे। “ना माँ! हम तुम्हारे साथ ही रहेंगे। हम अकेले नहीं खेलेंगे।" तथापि किसी भी तरह सुशीला ने समझा बुझा कर खेलने के लिए दूर भेज दिया। और भद्रा से कहा : कहिये मुझे क्या काम करना है? आप जो कहे वो काम करना आरम्भ कर दूँ। और भद्रा सेठनी जैसे उसका इन्तजार कर रही थी। उसने दो मटके देकर कहा "ले' सामने के कुए से पानी भर कर ले आ।" एक मटका सिर पर व एक मटका कमर में उठायें सुशीला कुँए पर गई। घड़े वजनदार थे। साथ ही इससे पूर्व उसने ऐसा काम किया नहीं था। तथापि मन ही मन नवकार मंत्र का उच्चारण करते हुये वह कुंए पर पानी भरने गयी। कंए से पानी निकालते-निकालते मुलायम हथेलियों पर छाले पड़ गये। और उसमें से जल टपकने लगा। फिर भी सहन शक्ति रखते हुए वह जल भर कर घर लौटी। इससे पूर्व कभी सिर पर मटका रखकर चलने का प्रसंग नहीं आया था। अतः चलते समय मटके से जल छलकने लगा, उसके सारे वस्त्र भीग गये। वह पानी से तरबतर हो गयी। किन्तु कहीं घड़ा गिरा तो? उस भय से भयभीत वह बड़ी कठिनाई से पानी भर, घर लौटी। अल्पावधि में ही उसकी कमर और गर्दन में बुरी तरह से दर्द होने लगा। पानी का घड़ा रखकर जैसे ही सुशीला पल दो पल सुस्ताने के लिए बैठी ही थी, कि भद्रा चंडिका का रूप धारण कर दहाड़ उठी। ‘अरी ओ महारानी! बेठी क्यों हो? जरा तो शर्म करो। अभी तो ऐसे-ऐसे दस घड़े पानी भरना है, उसके पश्चात् रसोई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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