________________ 90 भीमसेन चरित्र थी। लड़ाई झगड़े के प्रसंग पर प्रायः उसकी जीभ अंगारे उगलती थी। ठीक वैसे ही कैसे भी कुकर्म करने में वह सदैव आगे रहती थी। उसका देह-सौन्दर्य ऐसा था जो किसी की जुगुप्सा (वितृष्णा) उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त था। उसके बाल छोटे और खुरदरे थे। उसका मुँह चपटा और लोहे के तवे जैसा था। नाक विकृत और लम्बा था। पेट मोटा हो, गुब्बारे की तरह फैला हुआ था। आँखे बंदर की तरह थी और वक्षःस्थल तो बिलकुल पिचक गया था। उसमें लाज-शर्म लेश मात्र नहीं थी। स्वभाव से भी निर्दयी थी। धर्म व पुण्य की बातों में उसे तनिक भी रुचि नहीं थी। दयालुजनों की निन्दा करने में वह सदैव तत्पर रहती थी। ठीक वैसे ही धर्मात्माओं के प्रति उसके मन में इर्ष्या और तिरस्कार की मानता दूंस-ठूस कर भरी पड़ी थी। भीमसेन व उसके परिवार के लक्ष्मीपति सेठ की दूकान पर पहुँचने के उपरान्त सेठ उन्हें लेकर घर गये। वहाँ उसने अपनी पत्नी से कहा : सुन्दरी ये लोग बहुत भाग्यशाली व पुण्यशाली है। परंतु पूर्व भव के किन्हीं पाप कर्मों के कारण आज उनकी यह दुर्दशा हुई है। वाकई यह हमारा सौभाग्य है, कि उनका आगमन हमारे यहाँ हुआ है, काम धाम में दोनो ही पति-पत्नी कुशल है, मैंने इनको काम पर रखा है। यह पुरुष दुकान पर काम करेगा तथा स्त्री घर के काम-काज में तुम्हारा हाथ बटाँएगी। सरि सानाNA लक्ष्मीपति शेठ भीमसेन का व परिवार का भद्रा को परिचय करा रहे हैं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust