________________ दारककृति विचार HIછરા 3 // एकाक्षोऽपि च पश्यत्यविकलमन्धे तमिस्र इह पुरुषः / दीपेन सता यस्तद्वत्सामान्योप्यर्थवृन्दना भागमा // 35 // हीनो लेभे पतनं नन्दनमणिकार ऋषिदृशिक्रियया / ग्रहणं व्रतस्य सरेर्मूले परिणामपरि- 'शिष्ट |वृद्धः // 36 // गीतस्यागीतस्य च सत्साधुभिरन्वितत्वमाख्यातम् / जातः समाप्तकल्प, आमव्येशः समा- ता सन्दोहे चष्टः // 37 // मोक्षाध्वनि परिमन्थो गुणरहितो न गणे समावेश्यः / दुष्टः कुर्वन्गुरपि स्याचाक् तस्य | |शास्तापि श्रावयिता) // 38 // गङ्गाया वन्द्यते वारि, रथ्यायातं गुरोः पदः। संस्पर्शिरज आत्मार्थ, जनैः शिरसि धार्यते // 39 // भस्मोमेशेऽनम्बरत्वमेतः किं वन्द्यतां नहि / लब्धिमाजो मलामर्श-मुखमौषधसौरव्यदम् // 40 // विनाश्य दोषान्कुरुते समग्रां, शर्मावली यो गुणपडिक्तयुक्तां / सङ्गे सतां भव्यजना ! | रमध्वं, तरैति वृत्तान्तनिलीनचित्ताः // 41 // प्राप्य प्रभोः प्रार्थितपूरणस्य, पार्श्वस्य पूर्ण विमलप्रसादं / आनन्दवाधिनवसारिपुर्या-माख्यातवान्सर्वसुखार्थकोऽदः // 42 // इति सत्सङ्गवर्णनम् // शिष्टविचारः (23) . . .. . शिष्टवृन्दनतं शिष्ट श्रेष्ठ शिष्टव्रतोद्वहम् / तत्त्वार्थदेशकं-वीरं, नत्वा शिष्टक्रियां (विधि) AI ब्रुवे // 1 // शिष्टाः शिष्टत्वमायान्ति, शिष्टमार्गानुवर्तनातू / भाविभद्रा महाभागा, क्षीणदोषा यतस्तके IS // 2 // यच्च वेदोपगन्तृत्वप्रमुख लक्षणं मतम् / अन्यैः स्वमतमागृह्य, तदनीक्षितसुन्दरम् // 3 // बौद्धैर्यदन्यKI दुक्तं तत्क्थं नान्योन्यघातिता / अज्ञानिनोपि शिष्टत्व-मेवं सति प्रसज्यते // 4 // श्रद्धावन्तो यदज्ञाना, KI ईक्ष्यन्ते भूरिशो भुवि / शिष्टास्ते चेदन्धपारम्पर्यात् कापि न भिन्नता // 5 // पुराणं मानवं वेदोवैद्य चेति चतुष्टयं / हेतुना नोहनीयं चेत्परीक्षा प्रस्थिता वने // 6 // प्रामाण्यमपि किश्चकविधाशयवतां / I PP.AC.Gunratnesuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustMI . .