________________ // 40 // भागमो. सत्सङ्गवर्णनम् (22) सत्सङ्गद्धारकृति- नत्वा त्रिधा सदाचार-शिरोरत्नं महोदयं / सङ्गतिर्या सदाचारैः, सैव प्रस्ताव्यतेऽनघा // 1 // वर्णनम् A शोभनोज जने शुद्धो, विवेकिजनपावितः / लोकोत्तरस्तु साध्योऽत्रा-चारस्तेन न दुष्टता // 2 // तत्र ये न I | कुलाचार-हीना न पारदारिका / न च द्यूतादिसंसक्ता, न मद्यपिशिताशिनः // 3 // न नास्तिका न | द्विषन्तो, धर्म त्यागान बिभ्यति / न कुचेला न दुर्दान्ता, न च निर्व्यवसायिनः // 4 // नासद्व्ययोद्यता आये, नाव्ययिनोऽधमणकाः / कुटुम्बल्लेशिनो दीर्घ-रोपिणो द्रुह आत्मनः // 2 // न नेपथ्योद्भटास्तुच्छ-वस्त्रा न मलिनाम्बराः। क्लेशप्रिया न नो माता-पित्रादिविनयोज्जिताः // 6 // न मित्रद्रोहिणः स्वामि-द्रोहिणो न मलिम्लुचः / मिथ्योपदेशिनो नैव, न बहुभिर्विरोधिनः // // न राजदेशगोत्राणां, द्विषन्तः साधुनिन्दकाः। वृद्धविद्वेषिणो नार्चा-लोपका जगदीशितुः // 8 // नासुमद्धननोद्युक्ता, न छविच्छेद उद्यता / रोहका नातिभारस्य, नानपाननिरोधिनः // 9 // नासदोषाभिधातारो, नैव न्यासापहारिणः / न कूटलेख्यकर्त्तारो-ऽसत्कार्ये साक्षिणो न च // 10 // स्तेनं योक्ता न मुषितं, गृह्णन्ति धनकाम्यया / कूटमान al तुला नैव, न प्रतिरूपविक्रियाः // 11 // न नाटकोयता दाह-प्रयता न वनादिषु / कदर्या नानपाने ये, Hन रहिता धिया तथा // 12 // न निरर्थ वधे युक्ता, नान्यप्राणगतस्पृहाः / सर्वभूतेषु दुःखादे- नन्वे| ष्टार आहिताः // 13 // परार्थे कर्मठा ये स्युः, सघृणा दीनदुःखिनोः / स्वपरार्थ च वक्तारो, धर्मवाञ्छा- JALA कृतः खलु // 14 // कुटुम्बैकरसा दुःस्थ-सम्बन्धिभरणोद्यताः / भगिन्या: पोषका पत्या, रहिताया सुखेन IS/ ये // 15 // ये लोके न मताः, श्रेष्ठा-निर्देशेशाः कुले स्वके / सत्कथापक्षसंयुक्ता, गुरुदेवजनार्चकाः // 16 // // 4 // कोषा DI P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus/