________________ दायं न कृपणो भवेत् / सत्याये दानभोगादा-वैदम्पर्यमिदम्मतम् // 52 // लोकं लोकं वदान्योद्धृतकुलनिचयं | आगमो- II स्वःशिवश्रीद्धवृत्त, ज्ञायं ज्ञायं कदर्यावलिजनितमघं श्वनितिर्यक्त्वदायि / बोधं बोधं स्वधर्म प्रकटितसुगुणं I | यथाभद्र धारककृति- सर्वसौख्यावतारं, कारं कारं जिनार्चाप्रभृति सुकृतिदं मोक्षमेतीह लोकः // 53 // जिनचैत्यबिम्बपुस्तकमुनिश्रा- धर्मसिन सन्दोहे वकयुग्मजीवरक्षाब्ये / साधारणार्थखचिते पुरेऽत्र नवसारके रचितम् // 54 // सिद्धिकाष्ठाकचन्द्राब्दे, प्रसत्तेः पार्थपादयोः। अनन्तानन्दकृद्रम्य-मानन्दाय महीस्पृशाम् // 55 // इति दानधर्मः॥ __ यथाभद्रकधर्मसिद्धिः (2) . देवपूजादिका श्राद्ध-क्रिया सम्यक्त्वपूर्विका / फलदाऽपरथा व्यर्था, यथोप्तं बीजमूपरे // 1 // कश्चिदाहेति सूत्रार्थ, न्यायतोऽनवधारयन / सम्यक्त्वं यन्मुनिश्राद्ध-व्रतानां धुरि कीर्तितम् // 2 // तत्रापि सूरयो मार्ग-प्रवेशाय सुहस्तिवत् / रङ्कायेव मुनेश्चर्या, दद्युर्मिथ्यादृशे व्रतम् // 3 // भवनैर्गुण्यमुद्बुद्धं, मुमुक्षोर्यस्य चेतसि / द्रव्यसम्यक्त्वमारोप्य, व्रतं देयं विपश्चिता // 4 // अणुव्रते चतुर्थेऽतः, कन्यादाने फलेप्सिता / अतिचारतया गीता, श्राद्धानां श्रुतपारगैः॥२॥ मुनीनामपि मौनीन्द्र, आगमे गणधारिभिः। कासामोहोA दयाधीना, चित्तवृत्तिर्विपश्चिता // 6 // आज्ञारुच्यादिभेदेन, सम्यक्त्वं दशधोदितं / सूत्रे तत्र क्रियारुच्याः, 2 सम्भवो नैतदन्तरा // 7 // दानादिना तु सम्यक्त्व-प्राप्तिः शास्त्रे निरूप्यते / साऽन्योन्याश्रयविष्टब्धा, लीयते तव वाग्भीरुः // 8 // धन्यश्च शालिभद्रश्च, सम्यक्त्वं दानतो गतौ / दशार्णों वन्दनाद्धया, दुर्गता जिनपूज- M नात् // 9 // सुतः श्रेणिकधारिण्योदयायाः प्राग्भवोडवः / मानुष्यादि प्रव्रज्यान्तं, लेभे तन किमु श्रुतम् ? // 10 // किं चान्त्यपुद्गलावतें, क्रियाया आदगे भवेत् / अपार्घपुद्गले शेषे, सम्यक्त्वं तद्विचार्यताम् // 11 // HP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust | ভাষা