________________ आगमोद्धारककृतिसन्दोहे ॥शा स्यात्तस्यां जीवे विवेकिता // 42 // धनं वपुर्बलं धाम, यौवनं चपलं समं / संसारे नित्यमेकं तु, शिवं वेत्ति विवेकतः // 43 // विवेक्येव. विनवत्येतत्, त्राणं किञ्चिन्न विश्वगम् / धर्मो हि त्राणमार्त्तानां, परिणामात्ययावनात्। यतिधर्मों॥४४॥ प्रेत्याङ्गी यात्यवशः सन् , पुण्यपापप्रणोदितः / प्रागुपात्तान् विहाय रुवान्, एकाक्येवासहायकः // 45 // य पदेशः द दृश्यं विश्वगं सर्व, तद्धेयं यत् पृथग्भवम् / सार्ध स्वरूपमेत्येवात्मनो ज्ञानादि नापरम् // 46 // प्रेत्येह प्राग्भवेध्वजी, कायकारालये स्थितः / सर्वेषां मोहहेतूनां, देहो मूर्धन्यतां गतः // 47 // आरभ्यतेऽयमारम्भे, भवस्यान्ते च मुच्यते / आद्यान्ताशुचिरूपश्च, कोऽत्र देहे. ममत्वभाव // 48 // एवं मोहमले क्षीणे, जायते शुद्धभावनः / चेतनास रुणयाशु, क्रोधादीनाश्रवान् लघु // 42 // क्रुध्येन्मायेद्वञ्चयेन्न, न लुभ्येच्च विवेकवान् / न लिम्पेदातरौद्राभ्यां, जीवं न दूरयेद् गुणान् // 50 // एवं चापूर्वकरणं, यियासुर्न घनं मलम् / आश्रवेत् संवरेच्चाशु, रागद्वेषाल्पभावतः // 51 // आयान्तै चिक्कणाद्भावाद्, रागद्वेषोद्भवात् पुरा / निरुणद्धि महामोहं, सानुर्मारुतवेगवत् // 62 // भाविभद्रो विवेक्येवं, संवृणन्नाश्रवान् परान् / निर्जरां कुरुते यस्मान्निर्जरा संवृतेर्बलम् // 53 // विभागे च पदार्थानां, तत्वाद् द्वे एव सुन्दरे / जीवाजीवावेव तत्वे, नाभ्यां भिन्नं जगत्यपि // 54 // परं देष्टा यदि ने स्याद्धेयादेयार्थदेशनः / देशनायाः फलं श्रोता, किं लभेतात्मयत्नतः // 55 // स हिती देशको या स्याद्धयादेयार्थबोधकः / येन स्यान्निखिला चेष्टा, विघ्नहीनेष्टसाधिनी // 56 // आदेयस्तत्त्वतो मोक्षो, जन्ममृत्यादिवर्जितः / शश्वज्ज्ञानसुखालीढः, कर्मलेपोऽपि यत्र न // 57 // निर्जरा संवरश्चास्य, साधकी, बाधको पुनः / / बन्धाश्रवौं ततस्तत्व-सप्तके जिनगीः परा // 58 // पुण्यपांपे शुभाशुभ-कर्मणी साधने परे ग्रन्थिस्थौली तो गाढ-कर्मनिरण व्रजेत् // 59 // अभोगो नापि कोप्यङ्गी, भोगो नोदयमन्तरा / कर्मणां भोगतो नाशोऽतो नानिर्जरकोऽसुमान् // 60 // अबोधान्मोक्षतत्त्वस्यापेक्षन्ते नहि निर्जराम् / दुःखवेदाद् भवेद्या सा; निर्जराकामिका ऽसष // 61 // मोक्षमन्यादर्श मत्वा, :: निर्जरां चान्यथाविधाम् / सावयवहुलोपायर्या च साऽकामनिर्जरा // 12 // का पितशद्विर्याऽभीराणां मन्थनिकया। अग्निजलादिपाताधैर्या ऽपि साकामनिजरा // 63|| परिवाटूतापसाssजीवा-विकार त्यविराधकाः / अकामनिजेरावन्तः, सकामाऽऽराधकेऽङ्गिनि / / 64 // स ग्रन्थेः पुरतो गच्छन्नपूर्वकरणं प्रजेत् / तत्र तां निर्जरां कुर्याद्, या न. पूर्व भवोदधौ // 65 // एवं निर्जीय कर्माणि, यदा सम्यक्त्वम . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust