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________________ (176) किये नाग नागी अधोलोकस्वामी। हस्यौ मान ते दैत्यको है अकामी // 6 // तुही कल्पवृच्छं तुही कामधेनं। तुही दिव्य चिंतामनिं नास ऐनं // पसू नर्कके दुःखसेती छुड़ावै / महा स्वर्गमें मोच्छमैं तू वसावै // 7 // करै लोहकों हेम पाखान नामी। रटै नाम सो क्यों न हो मोखगामी॥ करै सेव ताकी करें देव सेवा / सुनै वैन सो ही लहै ग्यान मेवा // 8 // जपै जाप ताों कहा पाप लागें। धरै ध्यान ताके सवै दोष भागें // विना तोहि जानें धरे भौ घनेरे / * तिहारी कृपातें सरे काज मेरे // 9 // सोरठा। गनधर इंद्र न करि सकें, तुम विनती भगवान / द्यानत प्रीत निहारिक, कीजै आप समान // 10 // इति पार्श्वनाथस्तोत्र / (177) तिथिषोड़शी। दोहा। बानी एक नौं सदा, एक दरव आकास / एक धरम अधरम दरव, पड़िवा सुद्ध प्रकास // 1 // चौपई / दभेद सिद्ध संसार, संसारी त्रस थावर धार। पर-दया दोनों मन धरी, राग दोप तजि समता करौ॥२ तीज त्रिपात्र दान नित भजी, तीन काल सामायिक सजौ / उतपात ध्रौव्य पद साध, मन वच तन थिर होय समाध॥३ चौथ चार विध ध्यान विचार, चास्यौं आराधना सँभार / मैत्री आदि भावना चार, चारवंधसौं भिन्न निहार // 4 // ●पंच लवधि लहि जीव, भज परमेष्ठी पंच सदीव / पांच भेद स्वाध्याय वखान, पांचौ पैंताले पहचान // 5 // छट छै लेस्याके परनाम, पूजा आदि करौ पट काम। पुग्गलके जानौं पट भेद, छहौं काल लखिकै सुख वेद // 6 // सातै सात नरकतें डरौ, सात खेत धन जलसौं भरौ / सातौं नय समझौ गुनवंत, सात तत्त्व सरधा करि संत // 7 // आठ आठ दरसके अंग, ग्यान आठ विध गहौ अभंग। आठ भेद पूजौ जिनराय, आठ जोग कीजै मन लाय॥८॥ नौमी सील-वाड़ि नौ पाल, प्रायश्चित नौ भेद सँभाल / नो छायिक गुन मनमें राख, नो कपायकी तजि अभिलाख // दसमी दस पुग्गल परजाय, दसौं बंध हर चेतनराय / जनमत दस अतिसै जिनराज,दस विध परिगहसौं क्या काज ग्यारसि ग्यारै भाव समाज, सब अहमिंदर ग्यारै राज। ग्यार जोग सुरलोक मझार, ग्यारै अंग पढ़ें मुनि सार 11 ध. वि. 12 Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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