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________________ (174) द्वितउपदेस / नाथ भगवत 13 व्रतको धार। वचन मन काय। दरव वहुभाय। अघनास 15 -- तत्त्व पंचासतिसाचनमा अबका पा३ - - --- दोहरखाय 16 हनहिं सोय। मिवभूप // 17 // समाधिसरूप जिनेस, ग्यानी ध्यानी हितरपर नास सिवसुख विलसंत, वंदों विमलनाधभा अंतर बाहर परिगह डार, परम दिगंवर व्रतको, सरव जीव हित राह दिखाय,नमा अनंत वचन म सात तत्त्व पंचासति काय, अरथ नवा छ दरवव लोक अलोक सकल परकास, वंदो धर्मनाथ अघना पंचम चक्रवर्ति निधि भोग, कामदेव द्वादसम मनी सांतिकरन सोलम जिनराय,सांतिनाथ वंदौं हरखा वह थुति करें हरख नहिं होय, निंदें दोष गहै नहि सीलवान परब्रह्मस्वरूप, बंदों कुंथुनाथ सिवभूप॥ वारै गन पूजें सुखदाय, थुति वंदना करें अधिकाय। जाकी निज थुति कवहुन होय,बंदों अर जिनवर पर परभौ रतनत्रै अनुराग, इस भी व्याह समै वैरागी वाल ब्रह्म पूरनव्रतधार, बंदों मल्लिनाथ जितमार // विन उपदेस स्वयं वैराग, थुति लौकांत करें पग ला 'नमः सिद्ध' कहि सब व्रत लैहिं,वंदों मुनिसुव्रतव्रत दैहि स्रावक विद्यावंत निहार, भगतिभावसौं दियौ अहार वरखे रतनरासि ततकाल, वंदों नमि प्रभु दीनदयाल सब जीवनके वंदी छोर, राग दोप दो बंधन तोर।' रजमति तजि सिव तियकों मिले, नेमिनाथ बंदी सुखनिन्। दैत्य कियौ उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयौ फनिधार। गयौ कमठ सठ मुख करि स्याम,नमों मेरु सम पारसस्वाम भौसागरते जीव अपार, धरमपोतमैं धरे निहार / ड्रबत काढ़े दया विचार, वरधमान वंदों बहु वार // 24 // दोहा। चौवीसौं पदकमलजुग, बंदौं मन वुच काय / द्यानत पढ़े सुनै सदा, सो प्रभु क्यों न सुहाय // 25 // इति खयंभूस्तोत्र / (175) पार्श्वनाथस्तवन / भुजङ्गप्रयात / नरिंदं फनिंदं सुरिंदं अधीसं / सतिंदं सुपूजें भजे नाइ सीसं // मुनिंद्रं गनिंद्रं नमें जोरि हाथं / नमो देवदेवं सदा पार्सनाथं // 1 // गजेंद्रं मृगेंद्र गह्यौ तू छुटावै। महा आगरौं नागते तू बचावै // महानीरतें जुद्धतै तू जितावै। महारोगते बंधतै तू खुलावै // 2 // दुखी दुःखहर्ता सुखी सुःखकर्ता / सवै सेवकोंकौं महानंदभर्ता // हरै जच्छ राच्छस्स भूतं पिसाचं / विपं डाकिनी विघ्नके भै अवाचं // 3 // दरिद्रीनिकों से भले दान दीनैं। अपुत्रीनिको ते भले पुत्र कीने // महा संकटोंतें निकालै विधाता। सवै संपदा सर्वकौं देह दाता // 4 // महा चोरको वज्रको भै निवारै। महा पौनके पुंजते तू उबारै // महा क्रोधकी आगकों मेघधारा / महालोभ सैलेसहीं वज्र भारा // 5 // महा मोह अंधेरकों ग्यान भानं / महा कर्म-कांतारको दौ प्रधानं // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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