________________ // जिनंद // 13 // विचार॥१४॥ ( 178 ) बारसि वारै विध उपजोग, वारै प्रकृति दोपकी रोग वारै चक्रवर्ति लखि लेहु, वारै अव्रतकौं तजि देह // तेरसि तेरै स्रावक थान, तेरै भेद मनुज पहचान। तेरै रागप्रकृति सव निंद, तेरै भाव अजोगि-जिनंद चौदस चौदै पूरव जान, चौदै वाहिज अंग वखान। चौदै अंतर परिगह डार, चौदै जीवसमास विचार। मावस सम पंदै परमाद, करम भूमि पंदरै अनाद / पंच सरीर पंदरै रूप, पंदरै प्रकृति हरै मुनिभूप // 1 पूरनमासी सोलै ध्यान, सोलै स्वर्ग कहे भगवान / सोलै कपाय राह घटाय, सोल कला सम भावनिक सब चरचाकी चरचा एक, आतम आतम पर पर लाख कोटि ग्रंथनको सार, भेद-ग्यान अरु दयाविचा दोहा / गुनविलास सब तिथि कहीं, हैं परमारथरूप / पढ़े सुनै जो मन धरै, उपजै ग्यान अनूप // 16 इति तिथिपोड़शी। भावनि भाय 16 ( 179) स्तुतिवारसी। दोहा। तम देवनिके देव हौ, सुखसागर गुनखान / / मरति गुन को कहि सकै, करौं कछ थुति गान // 1 // फले कलपतरुवेलि ज्यौं, वंछित सुर नर राज / चिंतामनि ज्यौं देत है, चिंतित अर्थसमाज // 2 // स्वामी तेरी भगतिसौं, भक्त पुन्य उपजाय / तीन अरथ सुख भोगवै, तीनों जगके राय // 3 // तेरी थुति जे करत हैं, तिनकी थुति जग होय / जे तुम पूर्जे भावसौं, पूजनीक ते लोय // 4 // नमस्कार तुमकौं करें, विनयसहित सिर नाय / वंदनीक ते होत हैं, उत्तम पदकौं पाय // 5 // जे आग्या पालैं प्रभू, तिन आग्या जगमाहिं / नाम जपै तिस नामना, जग फैलै जस छाहिं // 6 // सफल नैन मेरे भये, तुम मुख सोभा देख / जीभ सफल मेरी भई, तुम गुन नाम विसेख // 7 // सफल चित्त मेरौ भयौ, तुम गुन चिंतत देव / पाय सफल आयें भये, हाथ सफल करि सेव // 8 // सीस सफल मेरौ भयौ, नमों तुमैं भगवान / नर-भौ लाहा में लहा, चरनकमल सरधान // 9 // गनधर इंद्र न जात हैं, तुम गुनसागर पार / कौन कथा मेरी तहां, लीजै प्रीत निहार // 10 // ताते वंदौं नाथजी, नमौं सुगुनसमुदाय / तीर्थकर पदकौं नमौं, नमौं जगत सुखदाय // 11 // पूजा थुति अरु वंदना, कीनी निज मन आन / द्यानत करना भावसों, कीजै आप समान // 12 // इति स्तुतिवारसी। Scanned with CamScanner