________________ दवक तातें बढ़ौ गुन का लोभवुरो सव औगुनमें दीनकौं दीजिये होय नत्र आराध भगति अगाध साधको (124) रोडकी। खान पेट निज भरे, भूप हू पेट भरै है। कहा बड़ाई भई, खाय दुरगंध कर है। पात्रदान नित देइ, लेइ नर-भौ-फल तर, अंत रहे कछु नाहिं, नाम तिनको जग ले / वित्त ( 31 मात्रा)। इंद्र फनिंद नरिंदन स्वामी, गामी सिवमारगके साः लोक अलोक सकल परकासत, निरमल रतनत्रै का तिनकी थिरता होत असनतें, दै भोजन करि भगति, यह गृहि-धर्म कौन नहिं चाहै, एक दान विन सबै उपा अडिल्ल। धरा धरामें द्रव्य, पेंड़ इक ना टलै। परिजन मरघट थाप, आप घरकों चलै // भली विचारी लकड़ी, जो साथै जले।। आगें दीरघ राह, धरम कीनों फलै // 41 // जस सौभाग्य सल्प, सूर सुख कुल भला / जाति लाभ सुभ नाम, विभौ पंडित कला // सरव संपदा पात्र, दानतें पाइयै / ... जतन करो किन जीव, बहुत क्या गाइयै // 42 // ___सबैया तेईसा। भौन करौं सुत नारिवरौं, धन गाढ़ि धरौं कठिनी महिं खहीं। काम घने इतने करने, अब दान सदा मनवंछित देहाँ // लोभ मलीन प्रवीन लखै निज, जानहुँगा जब ही कर लै हौं। न है जगम कहा, आप न याय मयाय मकानमाहिं बंध्या दृद्ध, दानकी बात मुन नीट गुन कागम देखिंथ, जात बुलायक in सब औगुनम इक, ताहि त दिमite दीजिय होय दया मन, मीठको त्रिय प्रतिमा दीजिये काम करै वहु, माहव दीत्रिय श्रादरपद सवाजिय वर रह नहि, भाटका दाथि गरमाथ। सदीजिये मोखके कारन, हाथ दियो न अशाची अडिया दाता पुरुषनि पास, नाम व जात है। रहों सूर घर माहि, मुहाग बिलान है। विद्या पंडित धाम, साति दुख को मंह। लछी कृपनकों पाय, महा माता गह // 46 // ऋवित्त (31 मात्रा)। उत्तम पात्र साध सिवसाधक, मध्यम पात्र सरावग मार। अपनपात्र समकिती अविरती,विन समकित कुपात्र व्रत-धार समकित विरत-रहित अपात्र हैं, पांच भेद भाव निरधार / उत्तम मध्यम जघन भेदसों, एई पंद्र पात्र विचार / / 47 // उत्तम मध्यम जघन पात्रतें, तीनों भोगभूमिमुख होय। लहे कुभोग कुपात्र दानतें, दान अपात्र दिय दुख होय / / वीजसु खेत डारि फल खइये, असर डारि बीज मति खोय / तातें मन वच काय प्रीतिसौं, पात्रदान दीजो सब कोया४८॥ यूरं त्यजामि वैधव्यादुदारं लजया पुनः / सापत्न्यात्पण्डितमपि तस्सास्कृपणमाश्रये // सोचत सोचत आय गई थिति, तौन कहै अबकै मरि जहाँ४३ Scanned with CamScanner