________________ दैननि जोग घरै सछिद्र नि जो धनवान करना ता नरकौ साहव है। (122) सवैया इकतीसा। साधनकौं दान देय सो तो फल-पुंज लेय ताकौं लखि अभिलाखै सो भी फल पावै है। चंदकांत मनि देखौ सुधा झरै चंद देखि, भावना ही फलै जो कै नीकै मन भाव है। धन होत साध पाय दान देत जो न मूढ, धरमी कहावै आप मायाको बढ़ावै है। विजली कपट परलोक सुख-गिरि फोड़े। जापै दान वनि आवै मोहि सो सुहावै है // 20 // अडिल्ल ( 21 मात्रा)। ग्रास अर्ध चौथाई नित प्रति दीजिये। जथा सकति ज्यों आपन भोजन कीजियै // आवत है जम भील न ढील लगाइयै / मनवांछित धन साध समा कव पाइयै // 30 // दोहा। मिथ्याती पसु दानरुचि, भोग भूमि उपजंत / कल्पवृच्छ दस सुख लहै, क्यों न लेत नर संत // 31 // __कवित्त (31 मात्रा)। जैसैं खान निधान पाय तजि, और ठौर खोदै अग्यान / (123) लोग सँजोग दरवको, दान देय नहिं मूरख जोय / द जिहाज रतन लै, सागर पार कौन विधि होय 33 चौपाई / दान करै नहिं दान, इह भौ जस पर भौ सुख खान। को साहव है और, सेवक भेजौ रच्छा-ठौर // 34 // सबैया तेईसा। में तन-भोग लखै पन, इंद्रनसौं रन जीतवौ चाहै / विषै मन चाह रहै वन, कोप नहीं छन सांत दसा है। Dad मन पोख दुखी जन, दान विर्षे धनकौं निरवाहै / लगैलछमी अपनी वह, आन लहै धन औरनका है।३५। घटै विघटै लछमी घर, दान दिय न घटै धन भाई। निवारहु कूप निहारहु, काढ़तते जल बाढ़त जाई // कौं दान निरंतर ठान, हियँ सरधान महासुखदाई। खाय गयौ वह खोय गयौनर, लेय गयौ जिह और खिलाई३६ कवित्त ( 31 मात्रा ) / खान पान पट भौन गौनमै, लोभ अकीरतवान बखान / पजामाहिं नाहिं जल फल सुभ, दीजै नीरस दानविधान // इह परलोक थोक सुख चूरै, महालोभ पूरै दुखदान / लोभी होइ लोभ तजि भाई, देय हाथ ले साथ निदान // 37 // सवैया तेईसा। लच्छि भई न भई घरमैं, नरमैं उपगार महा मन ढीलौ / जन्म भयौ नभयौ तिनको,जिनको चित नाहिं दयारस गीली संखकी भांति मुए जगमैं,जिनकौ कोऊनाम सुनै नहि कीलौ। दोष नहीं पर नाउन लैं जन, लेत हि होत अहारको हीलौ 38 +NA तैसैं घरमै दैन जोग सव, नैननि देखे मुनि गुन खान // दानवुद्धि जाकै नहिं उपजै, तासौं महा मूढ़ को आन / पुन्य जोगते द्रव्य कमायौ, सोन लगायौ उत्तम थान // 32 // ज्यौं नर रतन गमाय जलधिमैं, ढूढ़े भागौं पावै कोय / त्यों चिरकाल भमत भवसागर, कठिन मनुष भौ प्रापति सोय Scanned with CamScanner