________________ (117) दान बावनी। . छम्पर। वंदों आदि जिनिंद, वृत्त-तीरथ परगास्यौ। नमो स्रियांस नरिंद, दान-तीरथ अभ्यास्यौ // दोऊ चक्र अवक, धर्मरथकों लहि नामी। सिवपुर पुर बहु गए, जाहिं जै हैं आगामी // ए बड़े पुरुष संसारमै, कौन महातम ऊचरै। सोई जानौ मानौ चतुर, विरत दान रुचिसौ करो। सवैया इकोसा। सबके अंतरजामी तीनलोकपति स्वामी, आदिनाथ प्रभु नामी गामी सिव भौनके / तिनकों दियौ अहार हथिनापुर मझार, ताके गुन कहें सार ऐसे गुन कौनके // उज्जल सरद घन चंद जस व्यापि रह्यो, लोकमैं सुगंध फैलि बाय चलें पौनके / तेई सिरीअंस मोहि, लोभको विधंस करो, घरौ हियै ग्यान हरौ दुख आवागौनके // 2 // कुरुवंसी-भूप-मनिमालमधि नायक है, सिरीअंस दानेस्वर दानीमैं गिनाईयै / वार मासके उपास किये आदिनाथ तास, सो दिन अजौं लौं विद्ध अखतीज है प्रसिद्ध, कौनसी न रिद्ध सिद्ध नाम लेत पाईयै // 3 // सवैया तेइसा / (मत्तगयन्द) लभमानुष भौ सु विभौ जुत, पाय कहा गरवाय अनारी / व कला कमला पट पेखनि, देखनिकौं चपला उनहारी // लोभमहातम कूप परे तिन, देखि दया हम चित्त विचारी। नास निकारन कारन वैन, कहैं पकरौ निकरौ मतिधारी॥४॥ उत्तम नारि सपूत कुमार, भयौ धन सारतें मोह बढ्यौ है। बारन पार समुद्र विर्षे सुभ, दान विधान जिहाज चढ्यौ है। खेवट भावसौं प्रीति भई तव, भीति गई सुख राह पढ्यौ है। . धर्म जिहाज इलाज बिना, दुख वारिधितें जिय कौन कढ़यौ है अडिल। बहुत जीव हितकार, सार धन संग्रहा। पात्र दान विधि जान, सफल गिरही कहा // पावै सुभगतिद्वार, धारकै दानकों। ज्यौं वारिधि तरि जाय, पायक यानकौं // 6 // सवैया तेईसा। देस विदेस कलेस अनेक, करोर उपाय कमाय रमा रे। नारि सुहात न पूत ददात न, आपनि खात न जोरि जमा रे॥ ऐसौ महा धन प्यारो लहा जन, संत कहैं सुनि बैन हमारे / ताइक दान सु गति(?)बिना दुख,चेति अवै फिरि नाहिं समारे कवित्त। भोजन आदिमाहिं जो जन धन, नित प्रति खात जात हैसोय। ताको सुपनै विष न दरसन, ताते तए बूंद अवलोय // दियौ जी गिरास जास कैसे जस गाईयै // आनंद भयौ अकास बरसे रतन रास, तबतें पृथ्वीको वसुधा कहि वुलाईये / Scanned with CamScanner