________________ सिब नारिपरी है। (110) पिसमाव(म यावमहाज,माध्य-काला कविसीय विस असा विरकिए तिन, देस बिसेख मिया राम प सुनि साप प तिन, दान शरी उपरीन पानतपात कहा यह मात, क्रियातुमसे सिवा नारिका प्रतिमा-गावाम्म। 4 श्रीगरहसके पिंषौं, धात पखानके भव्य पना धिन धिना सिप राह पतापत, आसन ध्यान अनोप पानत आन सिंगार न सोहत, मोहत तीन लोक सभा पूजन गायनध्यापन को कहि,देखत ही पद वांछित पाया केवलग्यानि शहा न सुखेतमैं, सिख प्रसिद्ध न आँखिन पेर सूरि गुरू महावीर मनें फिय, साध नजीक न जाय विसेस पानि पिसुन लसै न धसै बुध, पानत सीख यही उर लेखे पंच-निकारक भौजल तारक,प्रात उठे प्रतिमा मुख देख॥२३॥ (111) शाखिनसौ सय देखि लिया प्रभु,नाक अनी लव ध्यान सजा है कानगिसौ सुननौ न लियो यन, यांधि निराकुल ध्यान धजा है अगाछिकदया। लोगनिसौं मिलनों हमको दुख,साहनिसों मिलनौ दुख भारी। भूपतिसौं मिलनों मरने सम, एक दसा मोहि लागत प्यारी // याएफी दाह जल जिय मूरख, वे-परवाह महा सुखकारी। घानत याहीत ग्यानी अच्छक, कर्मकी चाल सबै जिन टारी महावीर भगवानकी बन्दनाफे लिए श्रेणिकका गमन। ग्यान प्रधान लहा महावीरनैं, सेनिक आनंद भेरि दिवाई। मत्त मतंग तुरंग बड़े रथ, द्यानत सोभत इंद्र सवाई॥ घांभन छत्रिय वैस जु सूद, सु कामिनि भीर घटा उमड़ाई। कान परी न सुनै कोऊ बान सु, धूरके पूर कला रवि छाई 28 आदिनाथकी यानावस्था / ग्रीपम काल जलै भुविजाल,खरे गिरि सीस सिलापर स्वामी। ईधन कर्म उदासकी पौनते,ध्यानकीआगि जलै अभिरामी॥ ता निकलौ कन जाम उभ दिन,सीस दिपै छविसौं रवि नामी। आदि जिनेसुर ही परमेसुर, बंदत पाय करौ सिवगामी॥२९ चार प्रकारके गनुष्य / पानत उत्तम आतम चिंत, करै न डरै जमराज वलीतैं। मध्यम पूजन दान करें, निकरें दुरगीत (?) अँधेर गलीते // १-कायोत्सर्गायसागो जयति जिनपतिनाभिसूनुर्महात्मा, मध्याले यस भास्वानुपरि परिगतो राशते सोग्रमूर्तिः / धके कर्मेन्धनानां अतिबहुदहतो दूरमौदास्थयातरफूर्जरसधानव रिप रुचिरतरः प्रोगतो पिस्फुलिङ्गः // -पानन्दिपञ्चविंशतिका / -- - - -Timi m पूर्णमस्तुति। इंद फर्निद नरिंदतै काम , रूप अनूप कयौ नहिं जाई। दीपक मानिक चंदकी सूरकी, जोतितै देहकी जोति सवाई। चंदतै चंदनहत कपूरते, पालेरौं सीतल बानि बताई। धानतएगुनको नहिं पार सु, फेवलग्यानिकी कौन बड़ाई२४ रंचक राग नहीं जिनरायकै, सर्व परिग्रह त्याग दिया है। दोष कहा कहियै पिन कारन, आयुध एक न संग लिया है। साम्यतया निज ग्यान भया सव,कर्म विनास प्रकास किया है। आनंदकंद महा सुख साहब, धानतर्ने तकि याद किया है 25 यान / पाँवनिसौं कछु पावनौं नाहिं है,याहीत आवन जान तजा है। हाथनिसौं करना कछु काम न,लब किए कर आप भजा है / Scanned with CamScanner