________________ नाम सका रसता रसपा (108) पानावरतुति। पारसकौं भजि आरसकी तजि, जा रसका रसतार कार सजाय सुआरस पाय, सुधारस काय जरा जरा पारस पास कुधात विनास, सुधात प्रकास धरीन नागिनि नाग किए पड़ भाग सु,यानतमोर नकनकि महावीरस्तुति। वीर महा महावीर जिनेसुर, गोतम मान-धनेसुर की पालक चालमै सील धरेसुर, चंदना देखत बध सुला मैंड़क हीन किए अमरेसुर, दान सबै मन-पांछित पाए। यानत आज लौ ताहीको मारग, सागर है सुख होत सवाल सिखस्तुति / सिद्धकीरिद्धि प्रसिद्ध कहा कहुं,सूम भीपहु ग्यानीनजाने लोक अलोक त्रिकाल समाय, गए किम थूलको मान प्रयान वैन न आवत बुद्धि न पावत, चित्तमै प्रीतिसौं नामह जाने। धानत ठानत जा पदकौं तप,सो पद आप ही दें भगवान 16 ___भाचार्यस्तुति। पंच अचार विना अतिचार, करावनहार सु पांच हु धारी। चारि हु ग्यान दुआदस वान, रचे परवान लहैं रिधि भारी। वैकुल सुद्ध करें प्रतिबुद्ध सु, यानत भव्यनके उपकारी। तास अचारजके पद-वारज, मंगल-कारज धोक हमारी।१४॥ उपाध्यायस्तुति। ग्यारह अंग सुचौदह पूरव, आप पढ़े सु प. सव, याते। जीव अपार परे भवधार, निहार विचार दयामय बातें // आतम ग्यान सहैं दुख जान, करै थुति ग्यान सुबुद्ध कहातें। द्यानत ते उबझायनि पायनि, गांयनिके गुन गाय हियातै 15 (100) गावति / जीतन-भोग नज्यो गहिजोग, जोग नियोग गगान निहार। नंदन लागत गर्ग पाठापन, पुरुष पदापन समार॥ दगी शिपम निज निधन विगहमें रामभा। मानत गाधनमामिति निवारिक जोनि विधार भूजल पापमा मत गनी रवि, गंध मागुन जानुपांग। शीत नदीला पीपर, पाप माना निगर। पल पर नहिं ध्यान र, तिल-बाप नाही ना विद्यार। पानगाधनमामि राशिकागो निवारिक जीनिविषा भापति। यंगन राज गई प्रत शुज, बिगना गमाविषयी विधि दाई / पोसह ठान राणित जपान, निमिमान सुगीर भाटि। गारंग प्रष्ट परिमार हैटन, पाकी पात मान लिफाट / गयानल गोगनहिं उड, सादग भूगि गरायफ बाय 18 गाठ धरै गुनमूल दुभादरा, गृत गई तप हादस गा / 'वारि हु दान पिवं जल छान, न रातिम समता-रग या) / ग्यारह भेद लहें प्रतिगा सुभ, दरीन ग्यान परित अराध / थानत नेपन भेद पिया यह, पालत टालत कर्म-उपाधैं / 11 / जितनाणीवति / देव गुरू सुभ धर्मको जानिय, सम्यक आनिय मोखनिसानी। सिद्धनित पहले जिन मानिय, पाठ पहें हाजिय मुतग्यानी // सूरज दीपक मानक चंदत, जाय न जो तम सो तम हानी। यानत मोहि कृपाकर दो वर,दो फर जोरि नौ जिनयानी // Scanned with CamScanner