________________ (106) धर्मरहस्ययावनी। ____ मंगलाचरण / संवैया तेईसा (मत्तगयन्द)। पंचनिम कहिये परमेसुर, पंच हु अच्छर नाम दियेते। 'ओनम'कार सबै सिर ऊपर, पंचनित उतपत्ति कि लोक अलोक त्रिकालमै नाहिं, कोई तिनकी सम देख हिश आठहिरिन्द्रि नवा निधि सिद्धिको,द्यानत पाइयै गाय लिए भी-अरि हत भए अरिहंत, जपें नित संतनिके दुख-त्राता सिद्धि भई निज रिद्धिकी सिद्धकौं,नाम गहें लहै सेवक साल साधत मोखका तीनहु साध मैं, साध अराधमै द्यानत रात एपद इष्ट महा उतकिष्ट सु, मंगल मिष्ट सुदिष्टकै दाता // जा पदमै सब केवली द्यानत, जानत सो अरहंत हियेत जा पद सुद्ध, सबै जिय रिद्धिकौं, पाइयै सिद्धको नाम लिये। जी गुण थानक सातके बंदिय, सूरि गुरू मुनि जाप दियेते घोर उदंगल संचक वंचक, पंचक मंगलचार कियेते // 3 // अरहंतस्तुति। गर्भ छमास अगाऊ रचे पुर, जन्म सुरासुर मेरु न्हुलावै। देव रिसीस विरागि कर थुति, ग्यानविभौ हम कौन वता॥ आपनि जातकी वात कहा सिव, वातनित परकौं पहुंचा। पंचकल्यानक थानक द्यानत,जानत क्यों न महा सुख पावैट केवलग्यान अखैदृगवान, महासुखखान सुवीरज पूरा। द्यानत इंद नरिंद फनिंदनि, वंदितघाति किये चकचूरा // चौतिस आठ नौं गुन पाठ, दुवादस कोठनिको हित पूरा। भौ-अरिहंत सुमो अरिहंतहु, नाम जपो तुम ठाम हजूरा // 5 // १आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु / (107) मानुप थुति देव करें वहु, देवनित अति इंद्र वखाने / इंद्रनितें जुतकेवलि भासत, केवलितै गनजी अधिकानें // ताइपै ओर न पुव्व किरोरन, काल गये हम कौन समान। द्यानत पाय पर सिर नाय, विसेस बताय कहा हम जानें // 6 // आदिनाथस्तुति / आदि नरेसुर आदि मुनीसुर, आदि जिनेसुर आदिवतारी / मागर कोर किरोर अठारह. आरज रीति कुरीति निवारी // स्वर्ग विलासकै मोख निवासकै, राह चलाय कुराह विदारी। द्यानत देव पसूनर को कहि,नारकको सुखकारक भारी॥७॥ चंद्रप्रभस्तुति / पावन बावन चंदन मोहके, द्रोहकी दाह हरै न हरै तू। ताप लिये रविरूप उजासक. सांत अरूप प्रकास करै तू // द्यानत चंद असंखतें जोति, अनंत गुनी प्रभु चंद धेरै तू। अद्भुत राग विरागि कहावत, रागनिके घर रिद्धि भरैतू॥८॥ शान्तिनाथस्तुति / सांति जिनेस निसेस दिनेसते, तेज विसेस सुरेस न वोलें। कामपदी वर चक्र-विभौधर, आपनि रिद्धि कहें किह तौलें // बंदत चर्न निकंदत मन सु, वर्न दुई भव-बंधन खोलें / द्यानत हाथ गहौ किन नाथ, रहैं तुम साथ नहीं भव डोलें।। नेमिनाथस्तुति / नेमकुमारसौं पेम किए विन, केम कहौ सुख हे मन पावै। आनंद-लायक भौ-गद-घायक,स्यौ-पद-दायक ताहि नध्यावै। तीरथ दूरि अनेकनि धावत, गावत जीभ कहा घसि जावै / द्यानत आपसमान करैतोहि,चाहत और कहा सु बतावै 10 Scanned with CamScanner