________________ (100) वहिर भाव सब खोय, होय अंतर आतम सम, परमातम लख भ्रात, बात यह बड़ी अनूपम / देव धरम गुरु जान, आन सरधान अकंपत। . पूजा दान विधान, करौ सफली घर संपत // अरु बहुत वात कहियै कहा, ग्यान क्रियामैं मन तझ बीती रीती आव सव, अवै समझि कारज करी एक बूंद लहि सीप, अमल मुकताफल होई। एक बूँद गहि सर्प, महाविष उपजै सोई॥ एक बूंद तरु केदलि, सुद्ध कर्पूर विराजै। ताते तए मँझार, तासको नाम न पांजै // इम स्वाति बूंद बहु भेदसों, संगति फल परवानिरी तिमसुगुरुवचन नर भेदसों, भेद अनेक पिछानिये॥ एक सौ सैंतालीस शुभाशुभाक्रियाओंका त्याग / मन वच तनसौं एक, एक मन वच इक मन तन / इक वच तन इक वचन, एक मन जान एक तन // जोगभेद ए सात, सात कृत कारित अनुमत / उनचास विध वरत,-मान सु अतीत अनागत // इक सौ सैंतालिस सब क्रिया, पुन्य पाप ममता तजौ। निज परमानद समरस दसा, आप आपमें नित भजौ 18, कुकवि मुकवि वर्णन / कुमति रात तम नैन, प्रगट मारग नहिं पावै / (101) सुकवि ग्यान रवि जोति, मुकतिको पंथ चलावै / भविनि राह दिखलाय, आप सिव पदवी पावै // जिम मोह मिटै वैराग वढ़, सो वानी उर लेखियै। धनिद्यानत तारन तरन जग,सुगुरु जिहाज विसेखियै१९ अन्तमंगल / नमौं देव अरहंत, सिद्ध बंदौं जग ग्यायक। आचारज उबझाय, साधु तीनों सुखदायक // पंचे समान न आन, ध्यान तिनको करि लीजै / और उपाव न कोय, मनुप-भौ लाहो लीजै॥ द्यानत विवेकवीसी सदा, पढ़ौ महागुनकार है / निज आनँदमगन सदा रहो, सब ग्रंथनको सार है // 20 // इति विवेकवीसी। 1 केलेके वृक्षमें / 2 पावै / 1 भव्य जीवोंको / 2 पंच परमेष्टी। Scanned with CamScanner