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________________ (102) भक्ति-दशक। सवैया इकतीसा। रिपभ अजित संभौ अभिनंदन सुमति, पदम सुपास चंदाप्रभु जिन गाईयै / सुविधि सीतल श्रेयांस वासुपूज्य विमल, अनंत धरम सांति कुंथु उर भाईयै // मल्लि मुनिसुवरत नमि नेमि पारसजी, वर्धमान सुखदान हिये आन ध्याईयै / आदि मेर दक्खिनके वर्तमान वीस कहे, नाए सीस निस दीस रिद्धि सिद्धि पाईयै // 1 // आदिनाथ तीर्थंकरके भवान्तर। जयवर्मा दिच्छावल विद्याधर महावल, दूजे स्वर्ग ललितांग वज्रजंघ दानी जू। भोगभूमिमाहिं जाय सम्यक दरस पायौं, स्रीधर ईसानमैं सुविधि भूप ध्यानी जू॥ सोलहैं सुरग इंद्र वज्रनाभि चक्री भए, सर्वारथसिद्धि बसे आदिनाथ ग्यानी जू / बसे मोखदेस जाय द्वादस अवस्था पाय, गावै मनवचकाय द्यानत कहानी जू // 2 // गरभ जनम तप ग्यान निरवान भोग, लोग कहैं महाजोग धारयौ वन जाय जी। वादी सिच्छ विक्रिया अवधि सुत मनपर्जे, केवली गनेस धरे को तज्यौ वताय जी॥.. (103) चामकी अपावन महा दुर्गधं नारि छारि, मोख नारि कंठ लाई सीलवान राय जी। बानत चरित्र तेरे हमकों पवित्र करौ, बड़ेई विचित्र राग विनाल्यो वुलाय जी // 3 // चोरीको अघोरी थोरी वारमैं दया दयाल, कियौ है निरंजन तें अंजनके नामतें / / पांडौसे जुवारी अविचारी राजरिद्धि हारी, किरपा तिहारी सिव धारी भव धामर्ते // कीचक सौ नीच चाही द्रौपदी सती जीवीच, सौऊ तो लियौ नगीच धोय कीच कामतें। द्यानत अचंभ कहा तपसों वैकुंठ लहा, अधम उधारन हो स्वामी जी प्रनामतें // 4 // धरममें अलसानौ खान पानकों सयानौ, कहालौं वखानों सब जानौ बात हमरी। चाहत हौं मोष वरचौ दोपनिकै कोप पोप, कोटीधुज भयौ चाहों गांठमें न दमरी // दया भक्ति नई कई (2) पामरी तिहारी दई, घरमें है उठी नाहिं डारि लोभ कमरी / द्यानत कहाऊ दास यह तौ वड़ो लिवास, कीजिये उदास नास जाय आस चेमरी // 5 // बड़े धनवान इंद धरनिंद चक्रवर्ति, जेऊ जाहि जाचे ऐसे साहब हमारे हैं। 1 अंजन चोर / 2 पाण्डव / 3 मनमें / 4 समीप / 5 चमारिन नीच / Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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