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________________ ( 77 ) (76.) पांच छटै साते, इकतीस आ3 अाईस, नौमैं अठाईस दसैं वाईस प्रमानिए // ग्यारहैं इकवीस वारे वीस ते चौदह, __ चौदहमें "तेरै सिद्धमाहिं पांचं जानिए। सम्यक दरस ग्यान जीवत अनंत बल, .. दर्व दिष्ट सासतो सुभाव आप मानिए // 16 // सामान्य विशेष 21 स्वभाव। असंत नासत नित्य अनित्य अनेक एक, भव्य औ अभव्य भेद औ अभेद पर्म है। चेतन अचेतन अमूरत मूरत सुद्ध असुद्ध विभाव एक परदेस धर्म है // बहु परदेस उपचार दस ए विसेस पहली तुकके ग्यारे ते समान धर्म हैं। जीवके इकीस पुदगल वीस धर्माधर्म नभ सोलै.काल 'पंदै जानैं होत सर्म है // 17 // दव्य क्षेत्र काल अल्प पहुरय सभा इनके रादृशोक गाग रागपाग / अणूसौं अनंत काल समसौं अनंत खेत, नभसौं अनंतानंत भाव ग्यान मानिए / दर्वसौं समान धर्म दर्व औ अधर्म दर्य खेतसौं समान पंच पैताला वखानिए // कालसौं समान आव सागर तेतीस तहां सर्वारथसिद्ध नर्क माघवी प्रवानिए / भावसौं समान ग्यानरूप है सरय जीव एक आदि भेद बहु आगमत जानिए // 18 // पद द्रव्य नव तत्त्वके द्रव्य क्षेत्र कालभावका जुदा 2 प्रमाण / दर्वको प्रमान, जीव सिद्धसौं अनंत गुणी, खेतकी प्रमान जीव लोकतै अनंत है / कालको प्रमान, जीव अनूसौं अनंत गुणा, __ भाव नभसौं अनंतानंत ज्ञानवंत है / पांच दर्व नव तत्त्व, इनके प्रमान चार, पंचसंगै ग्रंथमाहि, भापो विरतंत है। इहां कहें भेद बढ़े थिरता न कौन पढ़े, जाही ताही भांति आप जानें सोई संत हैं // 19 // 1 चेतनखभाव मूर्तखभाव अशुदखभाव विभावसभाव और उपचरितस्वभाव ये पांच पटानेसे धर्मादि तीनमें सोलह रहते हैं / 2 अनेक प्रदेश घटानेसे कालमें पन्द्रह खभाव है। 3 गोमठसारका दूसरा नाम पंचसंप्रद भी है। . 2 नरक, देव गति और तीन अशुभ टेश्या पट्यनेसे तथा अम तकी जगह संयत होनेसे होते है। इसी प्रकार में मातमें संयन मेयतकी जगह क्षायोपशमिक चारित्र तथा तिग्गतिकी जगह मनःपक झान जोड़नेमे 31 होते हैं / 2 शुभ मादिकी दो टेश्या क्षायोपशमियः सम्यक पटानेसे 28 होते है। आदिकी तीन कवाय तीन वेद पटानेसे 22 भाव हो। 4 सुक्ष्म लोभकेविना २१भाव होते हैं।५ श्रीपश्रमिक सम्यक्त्व घटानेसे 20 है। तीन दर्शन तीन ज्ञान घटानेसे 14 होते हैं / 7 एकटेश्या पटानेसे 11 भाव होते है / 8 अनंतज्ञान वीर्य दर्शन मुख जीवत्व ये पांच भाव सिद्धोंमें है। अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनिखत्व अनेकत्य एकत्व भव्यत्व अभय्यत्व भेद बभेद और परम (पारणामिक भावयी प्रधानतासे) ये द्रोफे ग्यारह सामान्य खभाव है और चेतन अचेतन मूर्त अमूर्त शुद्ध अशुद्ध विभाव एकप्रदेश अनेकप्रदेश और उपचरित ये यो दश विशेष स्वभाव है। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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