________________ (71) तीन दोय एक दिन बीत लेत हैं अहार, एक वार दोय वार वह बार कार हैं। अवसर्पिनी छह काल उत्सर्पिनी उलटी, वीस कोराकोर भन्यौ प्रभुजी उद्धार हैं // 13 // पल्य सागर और निगोद। कूप रोम सौ सौ वर्ष विवहार पंल्य वीज, तातें असंख्यातको उधार पल्य नाम है। याते असंख्यात गुणौ पल्य अद्धा उतकिष्ट, दस कोरा कोरीको इक सागर स्वाम है // वीस कोरा कोरी दधि ताकौ एक कल्प नाम, .. ता मध्य चौवीसी दोय तिनकौं प्रनाम है। निकलि निगोद दो हजार-दधि इहां रहै, (75) मति तीनसै छतीस श्रुत ग्यान भेद वीस, ___ अंग अंग-बाहज पूरव सौ चालीस हैं। औधि तीने पेट भेद मर्नपरजै दो भेद केवल अभेद पांच भाव सिद्ध ईस हैं। मूल पंच भावके तरेपन उत्तर भाव, वंदत हों एक जहा सर्व भाव दीस हैं // 15 // त्रेपनभाव और चौदह गुणस्थान / मिथ्या गुनथान भाव, चौतीस बत्तीस दजे, तीजे में तेतीस, चौथे छत्तीस वखानिए / 1 बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत अनुक्क, भुव इनके उटटे एक, एकविध, अक्षिप्र, निःसृत, उक्त, अध्रुव, इनको अवग्रह ईहा अवाय धारणासे गुणा करनेते 48 हुए। इनको पांच इन्द्रिय छटे मनसे गुणा करनेसे 288 हुए।व्यंजनावग्रह चन: और मनसे नहीं होता,इस लिये चार इन्द्रियोंसे गुणाकरनेसे 48 हुए।सव मतिज्ञानके भेद 336 हुए। 2 पर्याय पर्यायसमास ( सूक्ष्नानगोद लन्थ्यपर्याप्तकका) अक्षर, अक्षरसमास, पद, पदसमास, संघात, संघातसमास, प्रतिपत्तिः, प्रतिपत्तिसमास, अनुयोग, अनुयोगसमास, प्राभृतप्राभृतः प्रामृतप्राभूतसनास, प्रामृत, प्राभृतसमास, वस्तु, वस्तुसमास, पूर्व, पूर्वसमास, ये 20 भेद श्रुतज्ञानके हैं। 3 अंगवाह्य / 4 देशावधि, परमावधि, सर्वावधि / 5 अनुगामिनी, अननुगामिनी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित, अनवस्थित / 6 ऋजुमति, विपुलमति / 7 कुमति, कुश्रुत, विभंगावधि, चक्षुर्दर्शन, अचभुर्दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य्य, पांच लब्धि, चार गति, चार कषाय, तीन लिङ्ग, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयत, असिद्ध, छै लेझ्या, जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व ये चौंतीस भाव मिथ्यात्व गुणस्थानमें है। 8 दूसरे गुणस्थानमें, मिथ्यादर्शन अभव्यत्व छोड़कर 32 भाव होते हैं। पिछले 32 में अवधिदर्शन और मिलानेसे 33 होते हैं। 10 तीन अज्ञानकी जगह तीन * सम्यग्ज्ञान और औपशमिक क्षायोपशमिक क्षायिक सम्यक्त्व मिलानेसे 36 होते है। पावै सिव नाहीं जावै वही सही ठाम है // 14 // भाव चेतना तीन प्रकार, पांचो ज्ञानके मूल भाव पांच, उत्तर भाव त्रेपन / भावं एक चेतनसौं तीन कर्म फल ग्यान, ग्यान एक पंच भेद भाषत मुनीस हैं। 1 कल्पकाल / 2 एक योजन (चारकोस) लंबे चौड़े कूपमें एक दिनसे सात दिन तकके भेड़के बच्चेके जिनका कि कैंचीसे दूसरा खंड न हो सके ऐसे भरे हए वालोंमेंसे एक 2 वालको सौ 2 वर्षमें निकाले / जितने वर्षोंमें खाली होवे. उसे व्यवहार पल्य कहते हैं। 3 दश कोड़ा कोड़ी पल्यका सागर होता है। 4 सागर। 5 दो हजार सागर। आत्मगुण। 7 कर्मचेतना, कर्मफलचेतना, ज्ञानचेतना ( सम्यग्दृष्टिके होनेवाली)। Scanned with CamScanner