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________________ सावरान कोकनी उनचायानिकी लोकको ग्रेगर दोन गुणा या मारिए। भेद तक अनेक मन कहा कोई एक, ऋरिक वियेक श्राप मांदायचामिण 1221 . होपरी मागे वापरायद किराग 2: है। जयू एक लाख दो दो दोनों ओर लौनोदधि, सब पांच सूगी गुनी पश्चीस फलाइए। दीप एकली निकार चौवीस समुद्रधार, जंयूसौं चौवीस गुणे उदधि पताइए / धातखंड चार चार सब सूची तेरहकी, __गुनौ सौ उनहत्तरि पञ्चीस घटाइए। जंबूसेती एक सौ चवाल गुनी धातखंड 'आमैं दधि दीप यों ही जिनवानी गाइए. // 10 // मोशनसे लेकर लोफाफाशतक क्षेत्रभेद / विवहारपल्ल रोम एक एक रोमनिपे, ___ असंख्यात कोट वर्ष समै रोम राखिए। यह पैल्ल उद्धार कोराकोरी पच्चीसगुनी, एते दीप सागरको राजु अभिलाखिए // . . अमण्यात मम एक आवटी यखानी म्यानी, मंग्य आवटी मिलने होन पर याम / मैतीमम तिहतरि बाम एक मुहरत, तीस एक दिन दिन तीम एक माम है। बार मास वर्ष लाग्न चटरामी पूग्वांग, गुणाकर मा पूरब आग मंद गम है। नस्वर्ग अवस्थित गुनथान मारगना, ग्यानम प्रकाम दव दम्रो घट बाम है // 12 // कारके याद मंद और बल्यमंशा / चारि तीन दोर्य एक कोराकारी दधि चीथा, बीयालीस घाट दो वियालीम हज़ार हैं। तीन दोय एक पल्य आव कोर पूरवकी, वीसी सौ वीम वर्ष नर त्रिजंच धार है। 1 सात राजू प्रमाण जगन्दगी होती है। उनचास गा लोक तर होता है। 3 चौरासी लाखको चागमा टावने गुणा करनेमे पूर्वाग होता है। 4 प्रथम मुखमा मुखमा काल चार कोदाकोडी मागरका होता है। ५दूमय सुखमा काल तीन कोदाकोडी गागरका। 6 तीसरा मुन्द्रमा दुखमा दो बट्टाकोड़ी सागरका / 7 चीथा दुबमा मुन्द्रमा 4100 वर्षकम एक कोट्टाकोही सागरका / 8 पांचवां दुखमाकाल 21 हजार वर्षका, इसी तरह छहा दुबमा टुखमा भी होता है / 9 चौथे काटमें उत्कृष्ट आयु एक करोड़ पूर्व वर्षकी होन्टी है। 10 पंचममें 120 वर्षकी। 11 छैने वीस वर्षकी। १लपण समुद्र / 2 एक समुद्र या द्वीपके सिरेसे लेकर दूसरे सिरे तककी रेखा प्रमाणको जो कि केन्द्रमें होकर जाती है सूची कहते हैं। इसप्रकार 1 लाख जय द्वीप, दोनों तरफ दो दो लाख लवणसमुद्र सब मिलकर पांच लाख, इसको इसीको गुणनेसे पचीस हुए। इसमेंसे जंबूद्वीपकी एक लाखसूचीको घटानेपर जंबूद्वीपसे लवणसमुद्र चौवीस गुणा भया / इसीप्रकार लवणसमुद्रके दोनो तरफ चार चार धातकी खंड है, सब मिलकर 13 हुए। इसको इसीसे गुणनेसे 169 हुए। इसमेंसे पचीस घटानेसे 144 गुना जंबूद्वीपसे धातकी खंड भया / इसी प्रकार सर्वत्र जानना / 3 व्यवहार पल्यके प्रत्येक रोमके ऊपर असंख्यातकोट वर्षके समय प्रमाण रोम रखनेसे उद्धार पल्य होता है / 4 उद्धार पल्यसे पचीसगुने ( अढाई सागर प्रमाण ) सब द्वीप समुद्र होते हैं / इतने प्रमाणहीको एक राजू कहते हैं। . Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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