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________________ छहों द्रव्य लोकमें हैं। छहों दर्व भरे लोक, कोई कहैं कछू नाहिं, / अहं शब्दसेती जीव जानिये प्रतच्छ है। पुग्गल प्रगट देह धन आदि दीसत हैं, धर्मविना सिद्ध चले जाहिंगे कुपच्छ है / अधरम दर्व विना थिरता सहाय कौन, मास वर्ष बोदा नया, कालहीसौं लच्छ है। ' व्योम विना रहैं कहां, सरधा मुकत मूल, मोखपुरपंथी ताहि यह राह दच्छ है // 20 // छहों द्रव्य क्षेत्र काल भाव उत्पाद व्यय ध्रौव्य खभाव विभाव / व सत्तारूप आपखेत परदेस माप, काल समै मरजादा, भाव मूल सत्त है। चार-मई आप तिहुं काल सर्व दर्व लसै, गुन द्रव्य परजाय होत नास व्यक्त है / चारौंके सुभाव ग्यात ध्रौव्य व्यय उतपात, सुभाव विभाव जीव जड़ सेत रक्त है। पांचनिसौं कौन काज अपनौ विभाव त्याज, कीजिये इलाज सुद्ध भाव बड़ी भक्ति है // 21 // शजमल जैन (79) की बीटी पदव्यके दश सामान्य गुण और सोलह विशेष गुण / अस्त वस्त दरव अगुरू-लघु परमेय, परदेस चेतन अचेतन अमूरती / मूरतीक समान दस हैं गुन दर्वनके, जुदे जुदे आठ आठ भाषे वुध-पूरती // ग्यान दर्स सुख बल वर्न रस गंध फास, ___ गैति थिति अवगाह वरतना मूरती। चेतन अचेतन अमूरत. विसेस सोले, दोके पट चौके तीन जानैं आप सूरती॥ 22 // पद्रव्य पंचास्तिकाय / जीव पुग्गल धरम अधरम व्योम पंच, अस्तिकाय काल मिलें पट द्रव्य कहिए। एक एक दरवमें अनंत अनंत गुन, अनंत अनंत परजाय सक्ति लहिए // ब्रह्मा करै विष्णु धरै ईस हरै कभी नाहिं, तिहुं काल अविनासी स्वयं-सिद्ध गहिए / 1 अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, अगुरूलघुत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व, और मूर्तत्व दश गुण द्रव्योंके सामान्य है / 2 चलनेमें सह- . कारीपना / 3 रुकनेमें सहायपना / 4 अन्यवस्तुको अपनेमें जगहका देना। 5 वस्तुके रूपान्तर करनेमें सहाय होना। 6 जीवके ज्ञान दर्शन सुख वीर्घ्य चेतनत्व और अमूर्तत्व ये छै विशेष गुण हैं। अजीवके स्पर्श रस गंध वर्ण मूर्तत्व और अचेतनत्व ये छै विशेष गुण हैं। 7 धर्ममें गतिहेतुत्व अमूर्तत्व अचेतनत्व हैं। अधर्ममें स्थितिहेतुत्व अमूर्तत्व अचेतनत्व है। आकाशमें अवगाहहेतुत्व अमूर्तत्व अचेतनत्व है। कालमें वर्तनाहेतुत्व अमूर्तत्व अचेतनत्व है। 1 आत्मामें अहं (मैं) ऐसा खसंवेदन प्रत्यक्ष होता है / 2 पुराना। देखा जाता है। 4 धर्म धर्मीमें अभेद विवक्षासे सत्खरूप पदार्थके देश ही खद्रव्य है। 5 आकाशमें स्थित अपने देशांश ही स्वक्षेत्र है। 6 निजगुणांश ( ऊवाश पर्याय ) खकाल है। 7 निज ज्ञानादिगुण खभाव हैं। 8 खभावपरिणमन शुद्ध जीवखरूप है। 9 विभावपरिणमन पुद्गलका भाग है। यहां केवल पुद्गल पायकी ही विवक्षा है। 1. सफेद / / Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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