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________________ (54) फरस वरन रस सुर नहि गंध, वरंग बरगना जास न बंधा नहिं पुदगल नहिं जीवविभाव,सो मैं सुद्ध निरंजन रावा२२॥ विविध भांति पुदगल परजाय, देह आदि भाषी जिनराया चेतनकी कहिये व्योहार, निह. भिन्न भिन्न निरधार // 23 // जैसे एकमेक जल खीर, तैसें आनौ जीव सरीर।। मिलें एक पै जुदे त्रिकाल, तजै नकोऊ अपनी चाल // 24 // नीर खीरसौं न्यारौ होय, छांछिमाहिं डार जो कोय / त्यौं ग्यानी अनुभौ अनुसरै, चेतन जड़सौं न्यारी करै / / 25|| दोहा। चेतन जड़ न्यारौ कर, सम्यकदृष्टी भूप / जड़ तजिक चेतन गहै, परमहंसचिदूप // 26 // ज्ञानवान अमलान प्रभु, जो सिवखेतमँझार / सो आतम मम घट वस, निहचे फेर न सार | // 27 // सिद्ध सुद्ध नित एक में, ग्यान आदि गुणखान / अगन प्रदेस अमूरती, तन प्रमान तन आन // 28 // सिद्ध सुद्ध नित एक में, निरालंब भगवान / करमरहित आनंदमय, अभै अखे जग जान // 29 // मनथिर होत विर्षे घटै, आतमतत्त्व अनूप / ज्ञान ध्यान वल साधिकै, प्रगटै ब्रह्मसरूप // 30 // अवर घन फट प्रगट रवि, भूपर करै उदोत / विषय कषाय घटावतें, जिय प्रकास जग होत // 31 // 1 समान अविभाग प्रतिच्छेदोंके धारक प्रत्येक कर्मपरमाणुको वर्ग कहते हैं। 2 वर्गके समूहको वर्गणा कहते हैं। 3 स्कन्ध / 4 निर्भय / 5 अक्षय / 6 आकाशमें। मन यच काय विकार नदि, निरविकारता बार। ग्रगट होय नित्र बानमा, परमादनपद मार // 32 // मौनगहिन आसन महिन, चिन चटाल खोय / पुग्व मत्तामें गले, नयं न मित्र होय / / 32 // भव्य करें चिरकाल तप, न न मित्र बिन म्यान / ग्यानबान ततकाल ही, याचे पद निवान // 34 // देह आदि पदव्यन, ममता की गवार / भयो परममं लीन मो, बांब कर्म अपार // 35 // इंद्रीविष मगन रहै, गग दोष घटमाहि / क्रोध मान ऋटुपित कृषी, ग्यानी एनी नाहि // 33 // देव मोतन नहीं. चेतन देन्बी नाहिं। राग दोष किहिमा करी, ही मैं ममतामाहिं // 37 // थावर जंगम मित्र रियु, देव आप ममान / राग विरोध कर नहीं, मोई ममतावान // 3 // सत्र असंखपन्देमजुन, जनमै मरे न कोय / गुणअनंत चेतनमह, दिव्यादिष्टि परि जोय // 39 // निहत्र रूप अमंद है. मेदव्य व्योहार। स्यादवाद मान सदा, तत्रि रागादि विकार // 40 // राग दोष कल्लोटबिन, जो मन जल थिर होय / सो देख निवल्पकी, और न देखें य॥४१॥ अमल मुथिर सरवर मर्य, दीन रतन डार / त्यों मन निरमल थिरविष, दीम चेतन सार // 42 // देखें विमलसरूपकी, इंद्रियविष बिमार / होय मुकति खिन आधर्म, तजि नरमी अवतार // 3 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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