________________ . 38 ग्याता जन थोरे मूढमती वहुतेरे नर, जानै नाहिं ग्यान सर कूपकैसे भेर्क हैं // 109 // हितोपदेश वर्णन, मत्तगयन्द / ज्ञान सोई जु करै हितकारज, ध्यान सोई मनकौं वसि आने / बुद्ध सोई जु लखै परमारथ, मीतें सोई दुविधा नहिं ठाने / भूप सोई उर नीत विचारत, नारि सोई भरता सनमानै। द्यानतं सो न गहै परको धन, . पीर सोई परपीरकौं जानै // 110 // छन्दशास्त्रके आठगणोंके नाम, स्वरूप, खामी, फल, कवित्त 31 मात्रा। यगन आदिलघु, उदक, देत सुत, भगन आदि गुरु, ससि, जस देह। रगण मध्य लघु, अगनि, मृत्यु फल, जगन मध्य गुरु, रवि, गदगेह // तगन अंतलघु, व्योम, अफल है, सगन अंतगुरु, पवन, भजेह / नगन त्रिलघु, सुर, आयु प्रदाता, मगन त्रिगुरू भू, लच्छि भरेह // 111 // ( 39 ) अंतापिका, छप्पय / कौन धर्म है सार, आन-मत भजै कि नाहीं। किहि त्यागें है सुजस, भरत हारे किहि ठाहीं // किहि थिर की. ध्यान, कौन बर्दै अघ नासै / लोभवंत धन देह, श्रवणतें कहा अभ्यासै // वहु पाप कौनतें बुद्धि सठ, . दया कौनकी धरहि मन / मुनिराज कहा कहि भव्य प्रति, जैनधरम मुन सुमन जन / / 112 // ' शार्दूलविक्रीड़ित / चैतन्यं अमलं अनादि अचलं, आनंद भावं मयं / त्रैलोक्ये अखयं अखंडित सदा, सारं सुजानं स्वयं // राग द्वेष त्रिकर्म सर्व रहितं, स्वच्छं स्वभावं जुतं / सोहं सिद्ध विशुद्ध एक परमं, ज्ञानं उपाधिच्युतं // 113 // - जीवके नव दृष्टान्त, सवैया इकतीसा। जैसौ रैनिदीपक अरुन परकास वन्यौ, तैसौ परकास सुद्ध जीवको वखान्यौ है / दधिमाहिं घीव खीरमाहिं नीर पाहनमैं, धात जैसे तैसें जीव पुद्गलमैं जान्यौ है / / 1 तालाव / 2 मैंडक / 3 पंडित। 4 मित्र / 5 दयानतदार अर्थात् ईमानदार और प्रन्थकर्ताका नाम।६ पराया कष्ट / 7 यगणके आदिमें लघु होता है, शेष दो वर्ण गुरु होते हैं। 8 यगणका देव जल है / 9 यगण पुत्रका दाता है। 10 रोगोंका घर। 1 इस छप्पयमें किये हुए सब प्रश्नोंके उत्तर जैन धरम मुन जन इस पदमें निकलते हैं। इस पदके प्रत्येक अक्षरके साथ अन्त मिलानेसे क्रमसे 12 प्रश्नोंके इस प्रकार 12 उत्तर होते हैं-१ जन ३धन, 4 रन, 5 मन, 6 मुन(नि), 7 न न, 8 सुन, 9 मन, 10 जन, 12 जैन धरम मुन सुमन जन / Scanned with CamScanner