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________________ ( 36 ) जहांको गयौ बाहुरौ कोई नहीं, . देत वह वास जगवासमासैं / / खान नहिं पान नहिं टकटकापुरीसम, मोहि तजि चलौ हौं कहाँ कावें॥ 104 // जिनस्तुति वर्णन-सवैया इकतीसा। स्याल ज्यों जुड़े अनेक काम तौ सरै न एक, सिंह होय एक तौ अनेक काज हुही है। तारे जो असंख्य मिलें कहा अंधकार दावें, एक भान-ज्योति दसौंदिसा जोति उही है। पाथर अपार भरे दारद न कहूं टरे, चिंतामनि एक मन चिंता जिन ट्रही है। तैसैं भगवान गुनखान करुनानिधान, सब देव आनमें प्रधान एक तुही है // 105 // ज्ञाता तथा मूढदशा, छप्पय / मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं रागी माने। मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं दोपी जानै / मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं रोगी देखै / . मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं भोगी पेखै // जो मिथ्यादृष्टी जीव सो, सुद्धातम नाहीं लहै / सोई ज्ञाता जो आपकौं, जैसाका तैसा गहै // 106 ___ज्ञानकथन, सवैया इकतीसा / चेतनके भाव दोय ग्यान औ अग्यान जोय, ___ एक निजभाव दूजौ परउतपात है। लौटकर आया / 2 सूर्यका प्रकाश। तातें एक भाव गहौ दूजी भाव मूल दही, जाते सिवपद लही यही ठीक बात है। भावको दुखायौ जीव भावहीसौं सुखी होय, भावहीकौं फेरि फेरै मोखपुर जात है। यह तो नीको प्रसंग लोक कह सरवंग, आगहीको दाधी अंग आग ही सिरात है // ____ ज्ञाता आलोचना कथन / आत्मा सचेतन है पुग्गल अचेतन है, जीव अविनस्वर सरीर छबि छारसी। यह तौ प्रगट भेद आलसी न जाने क्यों हू, जानै उद्यमीक सो तौ मोखकौं विहारसी। घटमें दयाविसेख देख और जीवनकों, आतमगवेपी बुध झूर मन नारसी। जहां देखौ ग्याताजन तहां तौ अचंभौ नाहिं, आरसीके देखें उर लागत है आरसी // 108 // मूढकथन। ग्यानके लखनहारे विरले जगतमाहिं, ग्यानके लखनहारे जगमैं अनेक हैं। भाखें निरपेक्षवैन सज्जन पुरुष केई, दीखत वहुत जिन्हें वचनकी टेक हैं / चूक परै रिसखात ऐसे बहु जीव भ्रात, औसर अचूक थोरे धरें जे विवेक हैं / 1 जला हुआ। 2 जिसका कभी निरन्वय ( सर्वथा ) नाश न हो Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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