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________________ अनंत अनंत सक्ति अजर अमर सवै, सदा असहाय निजसत्ताके बिलासी हैं। सर्व दर्व गेयरूप परभाव हेयरूप, सुद्धभाव उपादेय याते अविनासी हैं // 10 // द्वादश अधिकार। परिनामी दोय जीव पुद्गल प्रदेसी पांच, / कालविना करतार जीव भोगै फल है। जीव एक चेतन अकास एक सर्वगत, एक तीन धर्म और अधर्म भेद लहै // मूरतीक एक पुदगल एकक्षेत्री व्योम, नित्य चार जीव पुदगल विना सु लहै / हेतु पंच जीवकौं है क्रिया जीव पुदगलमैं, जुदे देस आनपच्छ भापत विमलं है // 101 // नवतत्त्वस्वरूप वर्णन / जीवतत्त्व चेतन अजीव पुग्गलादि पंच, कर्मनके आवनकौं आस्रव वखानिए / आतम करमके प्रदेस मिलें बंध कह्यौ, आस्रव निरोध ताहि संवर प्रमानिए // कर्म उदै देय कछू खिरै निर्जरा प्रसिद्ध, सत्तातै कर्मको विनास मोख मानिए / एई सात तत्त्व यामैं पुन्य पाप और मिलैं, एही हैं पदारथ नौ भव्य हिये आनिए // 102 // ( 35) वीस स्थानों के नाम / गुणथान चौदै जीव-थान चौदै पर्यापत, पट प्राण दस संज्ञा गति चारि चार हैं। इंद्री पांच काय पट जोगे पंद्र वेद तीन, हैं कपाय चारि ज्ञान आठ परकार हैं / संजम हैं सात चारि दर्शन लेस्या हैं पट, भव्य दोय जानि पट सम्यक विथार हैं। सैनी दोय आहारक दोय उपयोग वार, बीसठान आतमाके भाखे गणधार हैं // 103 // कुबुद्धि वचन ( निन्दा स्तुति ) करखा / कहत है कुबुधि सुनि कंत मेरौ कह्यौ, भूलि जिने जाहु जिननाथ पासैं / जाहगे कहेंगे छांडि धन धाम तिय, गही तप सही दुख भूख प्यासें // 1 वादर एकेन्द्रिय सूक्ष्मएकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय संज्ञी पंचेन्द्रिय इनके, पर्याप्त और अपर्याप्त इसप्रकार 14 जीव समास हैं / 2 आहार शरीर इन्द्रिय श्वासोछास भाषा मन इसप्रकार छह पर्व्याप्ति होती हैं। 3 पांच इन्द्रिय मनोबल वचनबल कायवल श्वासोछास और आयु इसप्रकार 10 प्राण हैं / 4 आहार भय मैथुन परिग्रह ये चार संज्ञा हैं। 5 सत्य मनोयोग असत्य मनोयोग उभय मनोयोग अनुभय मनोयोग इसतरह चार वचन योग और औदारिक काययोग औदारिकमिश्र काययोग वैक्रियिक काययोग वक्रियिक मिश्र काययोग आहारक काययोग आहारक मिश्रकाययोग कार्माण काययोग इसप्रकार 15 योग हैं / 6 अव्रत देशत्रत सामायिक छेदोपस्थापन परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसांपराय यथाख्यात इसतरह सात संयम हैं / 7 मिथ्या सासादन मिश्र औपशमिक क्षायोपशमिक और क्षायिक ये 6 सम्यक्त्वके भेद 8 पति / 9 मत जाओ। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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