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________________ RER जैसे हेमरूपो और फटिक जु निर्मल है, तैसें जीव निर्मल सुदिष्टिसौं पिछान्यौ है। नव दृष्टान्त करिकै जीवको सरूप जान्यौ, परभाव भान्यौ सुद्ध भाव मन आन्यौ है // 114 // . हर्ष-शोकजय मंत्र। केई केई वार जीव भूपति प्रचंड भयौ, केई केई वार जीव कीटरूप धखौ है। केई केई बार जीव नौग्रीवक जाय वस्यौ, केई बार सातमै नरक अवतस्यौ है॥ केई केई बार जीव राघौ मच्छ होइ चुक्यौ, केई वार साधारन तुच्छ काय बस्यौ है। सुख और दुःख दोऊ पावत है जीव सदा, यह जान ग्यानवान हर्ष सोक हस्यौ है // 115 // ज्ञानीमहिमा, कुंडलिया। समदिष्टी निजरूपकौं, ध्यावत है निजमाहिं। कर्मसत्रु छय करत है, जाकै ममता नाहिं // जाकै ममता नाहिं, आप परभेद विचारै / छहौं हव्यतै भिन्न, सुद्ध निजआतम धारै // करै न राग विरोध, मिलै जो इष्ट अनिष्टी / सो सिवपदवी लहै, वहै जो है समदिष्टी // 116 // उपसंहार। बार बार कहैं पुनरुक्त दोष लागत है, जागत न जीव तूतौ सोयौ मोह झगमैं / आतमासेती विमुख गहै राग दोपरूप, ... पंचइंद्रीविषैसुखलीन पगपगमें // पावत अनेक कष्ट होत नाहिं अष्ट नष्ट, महापद भिष्ट भयो भमै सिष्टमगमें। जागि जगवासी तू उदासी व्हकै विषयसौं, लागि सुद्ध अनुभौ ज्यों आवै नाहिं जगमैं // 117 // ग्रन्थमहिमा। जो इसकौं सुनै तिसै काननकौं हितकारी, जो इसकौं सुनै तिसै मंगलको मूल है। जो इसकौं पट्टै ताहि ज्ञान तौ विशेष बढे, यादि करै सो तौ पावै भव दधिको कूल है / / सकल ग्रंथनिमैं सार सार निज आतमा है, सुध उपयोगमई ताकौ जो न भूल है / सोई साध सोई संत सोई सब गुनवंत, लहै जु अनंत सुख नासै को धूल है // 118 // कविलघुता। पिंगल न पढ़यौ नहीं देखी नाममाला कोऊ, व्याकरण काव्य आदि एक नाहिं पढ़यौ है / आगमकी छाया लैक अपनी सकति सार, सैलीके प्रभावसेती स्वर कोट (?) गढ्यौ है // अच्छर अरथ छंद जहां जहां भंग होय, तहां तहां लीजै सोध ग्यान जिन्हें बढ़या है। वीतराग थुति कीजै साधरमी संग लीजै, आगम सुनीजै पीजै ग्यानरस कढ़यौ है // 11 १किनारा। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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