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________________ ( 31 ) (30) आन वखान सुहाइ नहीं, परधान पदारथसों रति माने, सो वुधिवान निदान लहै सिव, जो जगके दुख यौं सुख मान ज्ञायकरूप सदा चिनमूरति, राग विरोध उभै परछाहीं।" आप सँभार करै जब आतम, वे परभाव जुदे कछु नाहीं॥ भाव अज्ञान करै जबलौं, तवलौं नहिं ग्यान लखै निजमाहीं। भ्रामकभाव बढ़ाव करै जग, चेतनभाव करै सिवठाहीं // 8 // सिंहावलोकन-छप्पय / / . सुनहु हसे यह सीख, सीख मानौ सदगुरकी। 'गुरकी ऑन न लोपि, लोपि मिथ्यामति उरकी // उरकी समता गहौ, गहौ आतम अनुभौ सुख / सुख सरूप थिर रहै, रहै जगमैं उदास रुख // रखें करौ नहीं तुम विषयपर, पर तजि परमातम मुनहु / मुनहु न अजीव जड़ नाहिं निज, निज आतम वर्नन सुनहु // -भजत देव अरहंत, हंत मिथ्यात मोहकर / करत सुगुरु परनाम, नाम जिन जपत सुमन धर॥ धरम दयाजुत लखत, लखत निजरूप अमलपद। पैदमभाव गहि रहत, रहतँ हुव दुष्ट अष्ट मद // मदनबल घटत समता प्रगट, प्रगट अभय ममता तजत / तजत नसुभाव निज अपर तज,तजसुदुःख सिव सुख भजत लहत भेदविज्ञान, ज्ञानमय जीव सु जानत / जानत पुग्गल अन्य, अन्यसौं नातौ भानंत // भानत मिथ्या-तिमिर, तिमिर जासम नहिं कोई / कोई विकलप नाहिं, नाहिं दुविधा जस होई // होई अनंत सुख प्रगट जब, जब पानी निजपद गहत / गहत न ममत लखि गेय सब, सब जग तजि सिवपुर लहत / / जपत सुद्धपद एक, एक नहिं लखत जीव तन / तनक परिग्रह नाहिं, नाहिं जहँ राग दोप मन // मन वच तन थिर भयौ, भयौ वैराग अखंडित / खंडित आस्रवद्वार, द्वारसंवर प्रभु मंडित // मंडित समाधिसुख सहित जब, जव कपाय अरिगन खपत / खप तनममत्त निरमत्त नित, नित तिनके गुण भवि जपत // ज्ञाता साता कथन, सवैया (सुन्दरी)। जिनके घटमैं प्रगट्यौ परमारथ, रागविरोध हिये न विचारें। करकै अनुभौ निज आतमको, विषया सुखसौं हित मूल निवारें // हरिकै ममता धरिकै समता, . अपनी बल फोरि जु कर्म विडारें। जिनकी यह है करतूति सुजान, सुआप तिरै पर जीवन तारें // 92 // सवैया इकतीसा / चेतनासहित जीव तिहुंकाल राजत है, ग्यान दरसन भाव सदा जास लहिए। 1 अखिरकार / 2 हे आत्मन् / 3 आज्ञा / 4 अभिलाषा। 5 समझो। . 6 कमलकी तरह अलिप्त रहकर / 7 रहित / 8 कामदेवका जोर / 9 नाश करता है। 1 आत्मामें कर्म आनेका रास्ता / 2 आत्मामें नवीन कर्मका न आना। 3 विस्तरै-फैलें। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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