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________________ (20) संजम आचरै कहा मौनव्रत धरै कहा, तपस्या करें कहा कहा फिरै वनमैं // छंद करें नये कहा जोगासन भये कहा, दानहूके दये कहा बै साधुजनमें। जौलौं ममता न छूटै मिथ्याडोरी हून हूँ ब्रह्मज्ञान विना लीन लोभकी लगनमैं // 55 // सवैया तेईसा। मौन रहैं वनवास गहैं, वर काम दहैं जु सहैं दुख भारी। पाप हरै सुभरीति करें, जिनवैन धरै हिरदे सुखकारी // देह तपैं बहु जाप जपैं, न वि आप जपें ममता विसतारी। ते मुनि मूढ करें जगरूद, लहैं निजगेह न चेतनधारी॥५६॥ . .. गुरु शिष्यके प्रश्नोत्तर।... सोचत जात सबै दिनरात, क न बसात कहा करियेजी। सोच निबार निजातम धारहु, राग विरोध सवै हरिये जी॥ यौं कहिये जु कहा लहिये,सुवहै कहिये करुना धरिये जी। पावत मोख मिटावत दोष, सुयौं भवसागरकौं तरिये जी 57 वीतरागस्तुति, छप्पय / वीतरागको धर्म, सर्व जीवनको तारन / ' वीतरागको धर्म, कर्मको करै निवारन // वीतरागको धर्म, प्रगट क्रोधादिक नासै / वीतरागको धर्म, ग्यान केवल परगासै // जय वीतरागको धर्म यह, राग दोष जामैं नहीं। संसार परत इस जीवको, धर्म सरन जिनवर कही 58 (21) धर्मका महत्व, सर्वया इकतीसा / चिंतामनि पोरसा (2) रसायन कलपवृच्छ, कामधेनु चिंतावेलि पारस प्रमान रे। इन्हें आदि उत्तम पदारथ हैं जगतमें, मिलें एक भव सुख देत परधान रे // परभी गमन किये चलत न संग कोऊ, विना पुन्य उदै एऊ मिलत न आन रे। धर्मसी अनेक सुख पावै भव भव जीव, ताते गही धर्म परंपरा निरवान रे // 59 // मिथ्यादृष्टिवर्णन। असिधारी देव माने लोभी गुरु चित्त आने, हिंसामै धरम जानें दूरि सो धरमसौं। माटी जल आगि पौन वृच्छ पशु पंखी जौन, इन्हें आदि से कैसे छूटै ते करमसौं // रोम चाम हाड़ विष्टा आदि जे अपावन हैं, तिन्हें सुचि मानै आंखि मूंदी है भरमसौं। दीरघ संसारी तिन्हें देखि संत चुप्पु धारी, सबसौं बसाय न वसाय वेसरमसौं // 6 // सम्यग्दृष्टीकी इच्छा, सवैया (मदिरा)। आगमकौ पढ़िवौ जिनवंदन, संगति साधरमीजनकी। संजमवंत गुनज्ञ कथा, गहि मौन कथा सठ लोगनकी // सर्वनिसौं हितवैन उचारन, भावन पावन चेतनकी। एप्रगटौ भवभौ मुझतौ लग, जौलगमोख न कर्मनकी॥६१॥ . 1 पवित्र आत्माकी भावना / Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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