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________________ (238) उत्तम सु भोगभूमि मेष बाल कोमल हैं, मध्यम जघन्य कर्म भूमिनको वार है। लीख तिल जी अंगुल आठौं आठ आठ गुनै. अंगुल चावीसनको एक हाथ धार है। चारि हाथ एक चाप दो हजार चापनको, एक कोस चारि कोस जोजन विचार है। ऐसे पांचसै गुनैको जोजन प्रमान एक, ताको पल्लकूप गोल ढोलके अकार है // 14 // बाल महा जोजन लौं गनती लंबाई करौ, नव अंक पट सून्य सव पंदै दीस हैं। लंवाई चौराईसेती गुनैं हाथ तीस अंक, पंट्टैकी ऊंचाई गुनौ भए पैंतालीस हैं। गोलकी कसर काज उन्निस गुनो समाज, चौविसका भाग देहु भाखत मुनीस हैं। सत्ताईस अंक ठारै सुन्य पल्ल रोम कहे, धन्न जैन वैन सब वैननिके ईस हैं // 15 // 805306368000000 // 64 85183463413 51424000000000000 // 52255954073510 8034 730680320000000000000000 // 992 2863127396876265988292608000000000 000000000 // 41345266303082031777495 12192000000000000000000 / एते एकठे भए॥ . . सवैया इकतीसा। ____एक महा जोजनके उतसेध अंगुल हैं, अड़तीस कोडि लाख चालीस वताइए। (239) वीस लाख सत्ता, सहम एक सौ बावन, अंगुलके एते रोम दुहंको फलाइए। आठ कोड़ा कोड़ी पांच लाख तीस ही हजार, सहस छत्तीस कोड़ि असी लाख गाइए / एही पंदरकी धन किए अंक पैतालीस, एते काल जीव भम्यौ ऐसे भाव भाइए // 16 // अंकनाम, अडिल / चौ इक तिय चर पांच दोय पट तीन हैं। नभ तिय नभ वसु दो नभ तिय इक कीन हैं। सत सत सत चौ नौ पन इक दो इक कहे। नौ दो आगें ठारै सुन्न सरव लहे / / 17 / / ... सवैया इकतीसा। चार सै तेरैको पट बार कोटि पैंतालीस, लाख सहस छब्बीस सत तीन तीन जी। पंच चारि कोडि आठ लाख वीस हैं हजार, तीन सत सत्रै चार चार कोड़ी कीन जी / / सतत्तर लाख सहस उनचास से पंच, बारहको तीन बार कोड़ा कोड़ी वीनजी / उनईस लाख बीस ही हजार कोड़ा कोड़ी, पैंतालीस हैं अनादि भाखे न नवीन जी // 18 // दोहा / इक इक रोम निकारिए, सौ सौ वरस मझार / जब जब खाली कूप है, यही पल्ल व्यौहार // 19 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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