SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (237) (236) पल्ल-पच्चीसी। दोहा। कलप अनंतानंत लों, रुलै जीव विन ग्यान / सम्यकसौं सिवपद लहै, नमों सिद्ध भगवान // जो कोई पूछे इहां, एक कलपका काल / कितना सो व्यौरो कही, कहीं सुनी तजि लाज // 2 // चौपई। एक कलपके सागर कहे, कोड़ा कोड़ बीस सरदहे। इक सागरके पल्ल बखान, कोड़ाकोड़ी दस परवान॥३॥ दोहा। तीन भेद हैं पल्लके, प्रथम पल्ल 'व्यौहार'। दूजा पल्ल 'उधार' है, तीजा 'अद्धा' धार॥४॥ सोरठा। प्रथम रोम गिन देह, दूजा दीप उदधि गिनै।। तीजा भौ-तिथि एह, चहु गति जिय वस करमके // 5 // दोहा। प्रथम पल्ल व्यौहारकों, कहूं जिनागम जोय / अंक पंच चालीसकी, गनती जातें होय // 6 // सवैया-इकतीसा। नभका प्रदेस रोके पुद्गल दरव अनूं, औधिग्यानी देखै नैनगोचर न सोई है। अनंत अनंत मिलि खंध सन्नासन्न नाम, रजरैन त्रटरैन रथरैन होई है // उत्तम भू मध्यम जघन कर्मभूमि वाल, लीख तिल जौ अंगुल वारै रास जोई है। सन्नासन्न अंगुलली वारै आठ आठ गुन, जिनवानी जानी जिन तिन संस खोई है // 7 // दोहा / भोगभूमि उत्तम विष, उपजेके सिरवाल / जनम सात दिनके कहे, महामहीन रसाल // 8 // तिनसेती कूवा भरौ, जोजन एक प्रमान / अति सूच्छम सव कतरिक, खंड होहि नहिं आन // 9 // भोगभूमि उत्तम मधम, जघन करम भुवि लीख / तिल जौ अंगुल आठ ए, भेद लेहु तुम सीख // 10 // अंगुल हाथ धनुप कहे, कोस जु जोजन पंच / तीन भेद पांचौं लखे, संसै रहै न रंच // 11 // प्रथम नाम उत्सेध है, दूजा नाम प्रमान / तीजा आतम नाम है, अंगुल तीन बखान // 12 // सवैया इकतीसा। वाल आदि गनती सो उतसेध अंगुलते, चारौं गति देह नर्क स्वर्गके प्रसाद हैं। यातें पांचसै गुनेको अंगुल प्रमान तातें, दीपोदधि सैल नदी जैनधाम आद हैं / छहौं काल वृद्ध हानि आतम अंगुल तातें, भौन घट रथ छत्र आसन धुजाद हैं। इसी भांति हाथ चाप कोस अरु जोजन हैं, सबको लखैया जीव ताके गुन याद हैं // 13 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy