SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (234) (235) अभिराम / विवेक॥१३॥ नऊं // 94 // इन माहिं। रूपगता है ताकी नाम, हयगय आदि रूप से अलेप अनेक, धातवाद रसवाद विर ___सोरठा। द्वादस अंग सरूप, पदसंख्या पूरा भया। वाहज अंग अनूप, सो चौद विध वरना चौपई। इहां पदनिकी संख्या नाहिं, थोरे अच्छर हैं इन मा आठ किरोर अधिक कछु भने, चौदै वाहज अंगनितने पहला सामायिक है सोय, समभावनिमैं आयक होण५॥ नाम थापना दरवित भाव, खेत काल पट भेद लखानी दजा स्तव कहिये है सोय, चौवीसौं जिनकी थुति हो तीजा भेद वंदना जान, एक जिनेस नमन विधि ठान चौथा प्रतिक्रम कहियै सोय, किया दोष निरवानर पंचम विनै पंच परकार, ग्यान दरस व्रत तप उपचार॥९॥ छहा कृतक्रम क्रिया विसाल, पंच परम गुरु भगत त्रिका सातम दसवैकालिक कहा, मुनि अहार विध सुध सरदहा 90 आठम नाम उत्तराध्यैन, सव उपसर्ग परीसै जैन / नौमा नाम कल्प व्यौहार,मुनि विधि गहन अवध परिहार१०० कलपाकलप दसम लख लेहु, सिख्या कथन कहा गुन गेह। दरवित खेत काल अरु भाव, मुनिको जोग अजोग लखाव महाकलप ग्यारम अभिधान, साध क्रिया उतकिष्ट प्रधान / पुंडरीक द्वादसम बखान, चउविध सुर उपजनि तप दान॥ तेरम नाम महापुंडरीक, इंद्र उपजनि क्रिया तप लीक / चौदम नाम निषध परवान, दोप प्रमाद त्याग गुनखान // दोहा / चौदै वाहज अंग ए, अगले चारह अंग। वीस अंककी गिनतिका, पूरन भया प्रसंग // 104 // मनपरजै मति औधिकी, केवल संग्या नाहिं / सुतकेवलि केवल कह्यौ, धड्यौ ग्यान जग माहिं 105 लिंगज सुत अच्छररहित, सवदज अच्छर रूप / दोय भेद स्रुत ग्यानके, सवदज स्रुत सुभरूप // 106 // चीपई। विकल चतुक एकेन्द्री माहिं, लिंगज स्रुतमैं सम्यक नाहिं / चहुं गति सैनी सवदज ग्यान, उपजै सम्यक दरस प्रधान // स्रीजिन गुन अनंत भंडार, ओंकार रूप धन सार / इच्छा विना अनच्छर झरै, अच्छरमै है संसै हरै // 108 // धुनि समझें गनधर भ्रम नाहिं, और सुनै निज भाखा माहिं / प्रभुको कथन समझ गनधार, सोगनती को लखै अपार 109 जो गनधरने रचना करी, सो वह हम कहं तक विस्तरी। यामैं भूल चूक जो होय, बुध जन सोध लीजियै सोय 110 रवि ससि दीपक तम नहि हरै, अंतर तमवानी छै करै / सो वानी नित करौ उदोत, हमैं तुमैं परमातम जोत 111 दोहा। द्यानत बानी कथनतें, वरै ग्यान घट माहिं / ज्यौं नैननितें देखियै, घट पट धोखा नाहिं // 112 // इति वानीसंख्या। Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy