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________________ सनी बहु रंग। भविख्यात५१ चार प्रकार। तर ममे // 52 // सुख दुख जनम मरन जय द्वारा // 53 // चौरासीलाख॥५४॥ (230) चौपई। मन व्याकरण दसमा अंग, ताके भेद सुनौकर तन सुनि भाखै वात, धन कन लाभ अलाभवि जनम मरन जय हार, और भेद सुनि चार अकोदिनीथप निज धर्म, विच्छेपिनी हरे पर धर्मप्रभावक संवेजनी, भव दुख उदास निरवेजनी | लाख तिरानू सोल हजार, पद बंदा संदेह निवार विपाकसूत्र ग्यारमा देख, कर्म उदेकी बात विसेख। तीव्र मंद सुभ असुभ सुभाख, एक कोरि चौरासीलाख ग्यारै अंग कहे समझाय, नाम अर्थ पद संख्या गाय चार किरोर पंदरै लाख, दो हजार सबके पद भाख // मिथ्यादृष्टी बहु विध जीव, झूठ धर्मम मगन सदीय / जान तीनसै त्रेसठ जात, थोरे माहिं कहूं सब वात 18 किरियावाद असी सौ जीय, अक्रियावादी चौरासीय / अग्यानवादी सतसठि दीस, विनवादधारी बत्तीस // सवकौं जीतै नै समझाय, विविध भांति बहु जुगति उपाय। सोई दिष्टवाद है अंग, द्वादसमा जानी वहु भंग // 58 // 2. सोरठा / सारठा। इक सौ आठ किरोर, अड़सठ लख छप्पन सहस / पंच अधिक पद जोर, कहे वारमें अंगके // 59 // पंच भेद हैं तास, प्रथम परकरन सूत्र विध / प्रथमान जोग भास, पूरव गन अरु चूलिका // 6 // पंच भेद परकर्न, ससि रवि जंवूद्वीप भनि / दीप उदधि सुनि कर्न, व्याख्याप्रगपती सहित // 11 // (231) चौपई। चंद्रप्रगपती सुनी वखान, ससि ग्रह नछत्र तारे जान / आव काय गति उंद निहार, बत्तिस लाख पांच हजार // 6 // सूर्यप्रगपती माहिं विचार, देवी देव सकल परिवार / सूरजबितना विस्तार, पांच लाख पद तीन हजार // 6 // जंबूद्वीप प्रगपती जान, मेरु कुलाचल आदि बखान / तीन लाख पच्चीस हजार, बंदी चैत्याले सिर धार // 6 // दीप उदधि प्रगपत्ती सोय, असंख्यातकी कथनी होय। नाममानि वरनन पद सार, वावन लाख छतीस हजार॥६५॥ व्याख्याप्रज्ञप्ती है नाम, जीव अजीय दरव अभिराम / रूप अरूप विंव पद दीस, चौरासी लख सहस छतीस // 66 // दोहा / प्रथम भेद परकरन यह, पद इक कोर वखान / लाख इकासी जानिये, सहस पंच परवान // 37 // चौपई। स्त्र भेद दूजौ परवान, जीव अवंध अकरता जान / ... सुपरप्रकासक बहुविध भाख, याके पद अहासी लाख // 68 // प्रथमानजोग तीजा जथा, त्रेसठ पुरुष सलाका कथा / नाम काय थिति भेद प्रकास, पंच हजार कहे पद तास 69 पूरव चौथा भेद चखान, ताके चौदै नाम सुजान / साड़े पंचानवै किरोर, पंच अधिक सब पदका जोर // 70 // प्रथम कह्यौ पूरव उतपात, एक कोरि पद कहे विख्यात / उतपत व्यय धुव तीनों काल, नौ विध दरव भेद बहु साल७१ Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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