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________________ (228) सोरठा। इक सौ बारै कोर, लाख तिरासी जानिये। सहस अठावन जोर, पंच अधिक पद होत हैं॥२० वसु नभ इक नभ आठ, एक सात पन वरन वस। बाकी राखा पाठ, यात हुवा न एक पद // 30 // आठ कोड़ि इक लाख, आठ सहस अरु एक सौ। पचहत्तर हू भाख, ए अच्छर बाकी रहे // 31 // पदकै द्वादस अंग, कीनै गौतम स्वामिने। चौदै भेद उपंग, ते वाकी अच्छरनिके // 32 // चौपई। दादस चौदस अंग उपंग, भद्रबाहु जाने सरवंग। नाम मात्र हूं वरननि करों, अदभुत धीरज हिरदै धरौं॥३३॥ पहला आचारांग प्रधान, तामें जतिआचार विधान / सहस अठार पद हे तास, बंदन करों क्रिया परकास // 34 // सूत्रक्रान्त है दूजा अंग, धर्मक्रियाके सूत्र प्रसंग। पर छत्तीस हजार प्रमान, वंदन करोंजोरि जग पान॥३५॥ तीजा ठानाअंग विसेख, तामें दरव थान वह पेख / ( 229) दरवित धरम अधर्म समान, खेत पंच पैताले जान / सरवारथ सिध सातम जान, तेतिस सागर काल समान 40 केवल ग्यान वरावर जान, केवल दरसन भाव समान / पद इक लख चौसहिहजार, बंदों मनमें समता धार // 4 // व्याख्याप्रगपति पंचम अंग, ताके भेद कहीं सरवंग। जीव अस्तिको क्यों करिनास,किह विध नित्य अनित्य प्रकास साठि हजार प्रसनके काज, सब उत्तर व्याख्यान समाज / अट्ठाईस सहस द्वै लाख, पद वंदौं उत्तर रस चाख // 43 // धर्मकथा है छहा नाम, रतनत्रै दसलच्छन धाम / पांच लाख छप्पन हज्जार, पद वंदों में धरम विचार // 44 // सातम उपासकाअध्यैन, तामै स्रावककी विधि ऐन / पूजा दान संघ उपगार, ग्यारै प्रतिमा वरनन सार // 45 // अनाचार अतिचार विचार, घरकी सब किरिया विसतार। ग्यारै लाख छपन हजार, पद वंदौं स्रावकपदकार // 46 // दोहा। अंतकृतंदस अष्टमा, अंग कहे पद तास / तेईस लाख वखानिय, सहस अठाइस भास // 47 // इक इक जिन चारै भयौ, दस दस गुन उपसर्ग। सहि सहि सब सिवपुर गए, कथन सकल रिपिवगे॥४८॥ अनुत्तरोउपपाददस, नौमा अंग वखान / * लाख वानवै पद कहे, सहस चवालिस जान // 49 // दस दस मुनि उपसर्ग सहि, पहुंचे पंच विमान / एक एक जिनके समै, तिनको कथन विनान // 50 // गतिसौं चार भावसों पांच, चौ दिस अध ऊरध पट सांच। सात भंग वानीतें सात, इस प्रकार वहु थानक वात // 37 // पुदगल एक खंध अनु दोय, सरव दरव थानक यों जोय। सहस वियालिस पद अवधार, वंदौं सुद्ध थानदातार // 38 // चौथा समवायांग विसाल, तहां कथन सम बहुविध भाल / दरव खेत काल अरु भाव, जुदे जुदे वरनों विवसाय // 39 // Scanned with CamScanner
SR No.035338
Book TitleDhamvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDyantrai Kavi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size61 MB
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